पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१४६

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विहारविहार ।। । सौ छायो । इक इक कर स गलवाहाँ दै खरे संक विनु। दूजे कर गहि सुकवि । ले रहे अँगुरी गॅसि अँगुरिन । २५६ ।। चूमे चारु कपोल मुडेरा वीच हिँ राख्यो । किहुँ विधि ऊँचे होइ दोऊ : दोऊगर कर नाख्यो । उर उर से कसि एक करत जनु सुकवि संक विनु ।। थाकै थकि झुक झुकि उँचत फेर भरु ६ पगअँगुरिनु ॥ २५७ ॥ पुनः ।

  • परयौ जोर विपरीत रति रुपी सूरत रन धीर ।

करति कुलाहल किंकिनी गह्यो मौन मजीर ॥ २०७४, | गह्यो मौन मजीर चरन थिर भये छिाति माहीं । चंचल चलत नितम्ब कुच हु दोउ थिरकि सुहाहीं ॥ मदनविजय जनु हार कहत हिय पै लहरयो जो । सुकवि सवै विपरीत सुरत विपरीत परयो जो ॥ २५६ ॥ 45- 3: 2

.5 .-:-*:-*: 45 | नीट नींटि उठि वैठि हू पियप्यारी परभात । दोऊ नींदभरे खरे गरे लागि गिरिजात ॥ २०८ ॥ गरे लागि गिरि जात अधकहे वैन उचारत । कलु मूंदे कछु खुले दृगन दृग जोरि निहारत ॥ ढीले ढीले कर स कर गहि ठठकि रहत सुठि । सुकवि झुके से जात आज दोउ नांठ नीट उठि ॥ २५.६ ॥ ..:.

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.- 4 4, 4 -rk विनती रतिविपरीत की करी परसि पियपाय ।। | हँसि अनवाले ही दियो ऊतर दियो बताय ।। २०९ ॥ ऊतर दियो बताये बिना ही ऊतर दीने । ही दियो हुलसाय विना ही

  • जतनन कीने ॥ वड़े मनोरथ वा ही छन पिय के अनगिनती । सुकवि वधाई ।।
  • भई जु मानी पियविनती ॥ २६० ।। .

' 6 विदरति को भार पड़ा सुरतरूप रम में धौर नायिका अड़ रही है । ' भृतकानिक धात् । । ॐ साथ अाधा द का समान होता है ३ अाधा' के वर ट्रम्प हो जाते हैं। -. 14.4---