पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१५१

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| बिहाराबहार । | हि छन मैं दृग तरसत ॥ पीठ देइ बैठन मुखमोरन हुलसावत तन । तीखे | तीखे वचन सुकबि को चोरिरहे मन ॥ २७५ ॥ ॐ छिगुनी पहुँचौ गिलत अति दीनता दिखाय । बलिबासन की व्यत सुनि को बलि तुम्हें पत्याय ।। २२५॥ | को बलिं तुम्है पत्याय कथा सुनि बलिबामन की । तीन पाँव हैं जगत नापि कीनी निज मन की ॥ धरे मच्छ अवतार बड़े ही बड़े गये है। सुकवि गहत हो हाथ नाथ पहिले छिगुनी चै ॥ २७६ ॥ ।

  • चिरजीवो जोरी जुरै क्य ने सनेह बँभीर ।

। को घटि ये वृषभानुजा वे हलधर के बीर ॥ २२६ ॥ वे हलधर के बीर धर्म के रूप बखाने। धरत जगत को भार गोपगोपिन | मनमाने ॥ ये हू रस की दैन पतितगनपावन गोरी । सुकवि पापविनसावन यह चिरजीवो जोरी २७७॥ ॐ छिगुनी कनिष्ठिका १ * नायिका नायक कौ अन्तरङ्गिणी सखी हास्य पूर्वक सखी से कहती है। वृषभानुजा राधा वा वृषभ की अनुजा । हलंधर के बौर = बलभद्र के भाई वा हृषभ के भाई । धर्म के रूप = धार्मिक वा वृष । रस = आनन्द वा दूध । और संमस्त शेषभाग भी दोनों ओर लगता है । सं- स्कृत टीकाकार ने कदाचित् इस हास्य को अश्लील समझा इस लिये वे कहते हैं कि ये बड़ की बेटी ॐ वे बड़े के भाई हैं स्नेह होना ही चाहिये । उनका लेख यों है । “चिरजीवो' इति राधाष्णयोयुग्मं

  • चिरञ्जीवतु अनवोर्गम्भीर:न्न ः ‘क्यों न जुरे किं न भवेत् । कयमित्याह कोवटि अनयीमध्येकोन्यूनः |

कुलशीलसौन्दर्यादिभिः को हीनः । उभौ ससाविति यावत् तदाह इयं राधा कृषभानुकन्या अयं कृष्णः वल्लभभ्राता। समानकुलत्वात् अतिसख्य' युक्तमेव ” । परन्तु इसौ के आगे उनने लिखा है कि “ श्लेषः कञ्चन शान्तरसमाह' इससे जान पड़ता है कि उन्हें हास्य भी भासित धा । अथवा यह भी अर्थ झल कता है कि वे बलभ के भाई हैं अर्थात् चन्द्रवंशीय हैं और राधा · वृषभानुजा' अर्थात् ऋषराशिस्थ

  • (जेठवाले प्रचण्ड, भानु = सूर्य की बेटी हैं तो ऐसे सूर्यवंशीय चन्द्रवंशीय का स्नेह उचित ही है । यह
  • दोहा हरिप्रसादकृत, अनुवाद में नहीं है ।

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