विहारविहार । ।
- ताहि त्यौं अधिक सुहावै ॥ तरुतर रुकि रुकि कहो कहा सुखरासि लहै ना।
भली गली स सुकवि रसीलो जान चहै ना ॥ २८६ । । लखि लखि अखियनि अधखुलिनि अङ्ग मोरि अगिराय। अधिक उठि लेटति लटकि आलसभरी जभाय ॥२३॥ .. आलसभरी बँभाय चुटकिया बहुरि बजावति । तोरि तोरि अकराँस दृ-
- गन मलि भौंह उचावति ॥ सेद कपोलन सटे समेटत कचन कवहुँ सखि ।
सुकवि सवै निसि जगी मुँदि दृग लेटति लखि लखि ॥ २८७ दोऊ चाहभरे कळू चाहत कह्यो कहें न ।। नहिं जाँचक सुनि सम लौं बाहर निकसत वैन ॥ ॥२३६॥ बाहर निकसत वैन नाहिं दोउ हँसत कपोलन । ललचौहें दृग अधर फरक चाहत जनु चोलन ॥ झुकि झुकि उझकत भौंह भाव बुझत कोउ कोऊ । जादू सो करि दियो सुकवि दोउन पै दोऊ ॥ २८८ ।।
- उयौ सरदराकाससी कति क्यों न चित चेत् ।
| मनौ मदनछितिपाल को छाँहगीर छवि देत ।। २३७ ॥ छाँहगीर छवि देत चमक जेहिं चहुँ दिसि छाई । फूलनवरपासरिस नखत की पाँति सुहाई ॥ कोटि कोटि ज्यों चर कास त्यों फूलिरहे वर । सुकवि सिपाहिनसरिस कुमुदछविपुंज उयो सर ।। २८९ ॥ नावक सर से लाय के तिलक तरुनि इत ताकि ।। पावकझर सी झमक के गई झरोखा झाँकि ॥ २३८ ॥ | गई झरोखा झाँकि झझकि झझकति मतवारी । झुलनी झुम झुमाई ॐ यह टोn परमहशत में नहीं है । * नावकर - नलिक के ग्वा । =-=-=-=- -=-
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