पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१५६

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विहारविहार ।। टटकी धोई धोवती चटकीली मुखजोति । । फिराति रसोई के बगर जगरमगर दुति होति ॥ २४३ ॥ जगरमगर दुति होति चमाचम चमकति चूरी । सेद कपोलन पोंछ रही।

  • लागत अति रूरी ॥ झाँके झरोखे चलाते दिखावात निजछवि छटकी ।

सुकवि हिये अटकी खटकी दृग तियरुचि टटकी ॥ २९५ ॥ छनक चलति ठठकति छनक भुज प्रीतमगल डारि । चढ़ी अटा देखति घटा बिज्जुछटा सी नारि ॥ २४४ ॥ विज्जुछटा सी नारि वटा से नैन चलावत । हटा हटा कचलटा निरखि पियहिय हरपावत । हरें हरें बतराइ रही है हरति सुकविमन। छन अटकति

  • छन चलति ठठकि छन ठुमकि मुरात छन । २६.६ ।।

4- % F- राधा हरि हरि राधिका बनि आये संकेत । दंपति रतिविपरीतसुख सहज सुरत हू लेत ॥ २४५ ॥ सहज सुरत है लेत ताहि को मानुप जानै । अनाधिकारी सुनै कौन अरु । कान वखाने । काटत जम के फन्द मिटावत सव भववाधा । सुकवि दोऊ हैं एक स्याम हरि गोरी राधा ॥ २७ ॥ . 41

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. चलत धैर घर घर तऊ घरी न घर ठहराति ।। समुझि उही र कों चले भूलि उही घर जाति ॥ २६ ॥ जाति उही घर समुझि भुलि हूँ मग मग भटकति । घरहाइन की घोर पुरक सुनि हु नहिं अटकति ।। धृमि तिते ही लखति सुकवि ओसर अनो- में सर । तिय राची घनस्याम भले ही चलत घेर घर ।। २९६ ।