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- - विहारविहार । । चित तरसावत ॥ या छवि वरनत किते सुकवि हू जात मूक व्है । ठठक चित्र
- स होत विलोकत सखि लोचन हे ॥ ३०२ ॥
सकचि सकि पियनिकट तें मुलाकि कछक तन तोरि ।। कर आँचर की ओट करि जमुहानी मुख मोरि ॥ २५१ ।। जमुहानी मुख मोरि वाम कर चुटकी दीनी ।छवि की चुटकी देत+ पाय
- हिय चुटकी लीनी ॥ चुटकी + भर यह कान्ति रही जारत जुवजनजिये ।
सुकवि सुहावनि निरखि रही है सकुचि सराक पिय ॥ ३०३ ॥ बँदी भाल तंवोल मुख सीस सिलसिले बार। दृग ऑजे राजे खरी येही सहज सिँगार ।। २५२ ।। ये ही सहज सिँगार हार फूलन को रूरो । गोदन गुद्यो कपोल दोऊ कर सुन्दर चूरो ।। कंचुकिकसे उरोज हाथ पग राची मैंदी । छला लिगॅनियाँ । छज्यो सुकचि सुख कुंकुम चॅदी ॥ ३०४ ।। ये ही सहज सिंगार लसै जो पट चटकीलो । कण्ठ साँवरी पात नाक बेसर चमकीलो रेख महावर रची रची कर चरनन मैंदी । सुकवि अलक १ जुग भौंह मध्य राजत वर बँदी ।। ३०५ ॥ --
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45 | पुनः । . 4
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hr 44471 विधि विधि के निकरै टरै नहीं परे हृ पान । चिते कितै तें ले धरयो इतौ इतै तन मान ।। २५३ ।। | इतो इते तन मान आन कैसे ध धारयो । यह माखन सा रूप कठिन
- पुट इजा । • भिक्षा । ; चिकाटी। x ग भर। * मी का वचन मानवती में । भाति ।
- ** ** *यक ने मनावा तेरा मान जाना नहीं धीर पाव भी पड़े । पृतना कह भी हाथ में बता ।
- : * * * ने रफ़ इतना बड़ा इतने छोटे से शरीर में क्रोध, ( इति लालचन्द्रिका ) ।
के पछि ३ प्रम् न ६ ‘धान' पाबुत है । यह टोहा इरिप्रसाद के अनुवाद तवा देवकीनंदन की
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