पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१६१

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बिहारीविहार ।

  • आल इन लोयनसरन को खरो विषम संचार । ।

| लगे लगाये एक से दुहुअन करत सु मार ।। २६०.॥ हुहुअन करत सु मार अचानक हीय विदारत । साँस उड़ाइ ज़राइ ज़िगर जलआँसू ढारत । वायुझिजलअस्त्र सक्ति स भरे जाउँ बलि । विन गुन धनु स चुलत सुकबि सर अजब अहँ अलि ॥ ३४६ ॥ लोभलगे हरिरूप के करी + साट जुरि जाय । हौं इन बेची बीच ही लोयन बड़ी बलाय ॥ २६१ ॥.... | लोयन बड़ी बलाय अहें नट के से बट्टा । दरस अमोलक मोल. मानि कीनो जनु सट्टा ॥ मेरे सुकवि कहाइ मेहि बेची लालच, करि । क्यौं धाँ लई खरीद कहा ध लोभलगे हरि ॥ ३१७ ॥ | नैना नेक न मानहाँ कितौ कह्यौ समुझाय। ... : |... तन मन हारे हू हँसँ तिनसों कहा बसाय ॥ २६२ ॥ .:. तिन स कहा बसाय सखी अपने जु कहावत । तऊ जरावत जीय ललचि असून वहावत ॥ सदा तरसते रहत दुरसहित ये दिन रैना । सुकबि मान मरजादा खोई अलि इन नैना ॥ ३१८ ॥ . पुन: 1. तिन स कहा बसायलाज जिन धोइ बहाई । औरन हियरो हारि देत ॐ अपने को लगे तोभी दोनोको मारकरते हैं । और लगाये जाय तोभी दोनों को मारकरते है. ॥ वा अपने को लगै अथवा अपनी ओर से दूसरे को लगाये नँय तो ( दुहुअन एक में) दोनों प्रकारं से

  • एक से होके अपने ऊपर मारकरते हैं ।।

सट्टा किया । इहै इस कुण्डलिया के लिये दोहे का अर्थ यों” समझनां । खण्डिता सखी से'। ना यक को (ही) हृदय मे .( नैना नेक न मान ) न कुछ नय है न मान है। कितना समझाया तो भी है। | टूसरी से तन मन हारे हैं। औ हसते हैं. अब इन से क्या बस चलै । ...... ."