पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१६३

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बिहारीबिहार। । मो हू सौं तजि मोह दृश चले लागि उहिँ गैल।।। | छनक छाय छबिगुरडरी* छले छबीले छैल ॥ २६६ ॥ छले छवीले छैल मोहनी सी जनु मारी। मधुर मधुर मुसकाय ठगेरी सी* कछु डारी । सुकबि बिससिये नैन नाहिँ पूरे निरमोहू । उन के है हैं कहा चले तजि कै जो मो हू ॥ ३२३ ॥ नखसिख रूपभरे खरे तउ माँगत मुसकान ।। | तजत न लोचन लालची ये ललचाँही बान ।। २६७ ॥ ये ललचौहाँ वान लालची लोचन तजत न । चहत कबहुँ मुसकान क- बहुँ चाहत हैं अनखन ॥ पियत बदनबिधुसुधा कबहुँ कचठ्यालवालबिख । तउ प्यासे ही रुहूत सुकबि अटके दृग नखसिख ॥ ३२४ ॥ जस अपजस देखत नहीं देखत साँवल गात।। कहा करौं लालचभरे चपल नैन चलि जात ।। २६८॥ | चपल नैन चलि ज़ात रुकतं रोके न किहूँ बिधि । सूखत माँगत ढरत । कहा धाँ भयो हाय विधि ॥ सदा उनमने रहत भये ऐसे कछु पुरवस ।। सुकवि स्याम पै मोहे निरखत नहिँ जस अपजस ॥ ३२५ ॥ लाजलगाम न मानहीं नैना मो बस नाहिँ । ये मुहँजोर तुरंङ्ग लौं ऍचत हू चलि जाहिँ ॥ २६९ ॥ . चत हू चलि जाहिँ चाहचाबुकसकाये । मानहुँ मदनसवार एड़ दै सुकवि, उड़ाये ॥ असुफेन गिराइ रहै कीने थरथर तन। चूँघटटाटी लाँघत : मानत लाजलगाम न ॥ ३२६ ॥ . : • गुरडरी = गुड़ की डली = माधुर्यं । * हा दैव। दो बिधि शब्द के दो अर्थ है ।