पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बिहारीविहार ।। लरिका लैवे के मिसनि लंगर मोढिग आय ।।::: | गयो अचानक आँगुरी छाती छैल छुवाय ॥ २८३ । । । छाती छैल छुवाय अधर ही मैं कछु बिहँस्यो । मन्द कहा धाँ कह्यो फेर मन ही मन हुलस्यो । तिर लखि मोओर लग्यो चुटकी सी दैवे । सुकबि राखि मन और चलत है लरिका लैवे ॥ ३४३ ॥ नई लगनि कुल की सकुच विकल भई अकुलाय । । . दुहुँ ओर ऍची फिरै फिरकी लौं दिन जाय ॥ २८४ ॥ | जाय फसी वह नेहडोर के बन्धन गोरी । चतुरचैवाइनचक्कर परि चक- ।। ३ पक भई भोरी ॥ औरै सँग कछु देख परत छई औरै लुनई । चाह लाज मिलि : सुकवि धूपछायाछवि उनई ॥ ३४४ ॥ .

| झटक चढ़ति उतरति अटा नेक न थाकति देह । । भई रहति नट को बटा अटकी नागरि नेह ॥ २८५ ॥ । अटकी नागरि नेह चढ़ति उतरति पट झटकति । ठटकति ठटकति चलति खटकभरि पुनि कछु अटकति । भृकुटि कुटिल मटकायरही बोलत नाहिँ नटखट । नटवर के बस सुकवि भट्ट बोलै झटकति झट ॥ ३४५ ॥ । | इत ते उत उत ते इतै छन न कहूँ ठहराति । . जक न परति चकई भई फिरि आवत फिरि जाति ॥२८६॥

  • फिरि आवति फिरि जात होत खिरकी में ठाढ़ी । अनिमिप दृग ते त-
  • कति प्रीति ऐसी कटु बाड़ी ॥ गोरी के अंग हाय समायो साँवर कित ते ।।

सुकवि चावरी भई तिया भटकति उत इत ते ॥ ३४६ ।।।