पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१७१

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= | बिहारीबिहार। करत जात जेती कटनि बढ़ि रससरितासोत ।।

  • आलंबाल उर प्रेमतरु तितो तितो दृढ़ होत ॥ २९५॥
  • तितो तितो दृढ़ होत सुरात हिमकनन नहायो । बिरहझपट्टा लगे और

|हू फैलि सुहायो । जोगपत्रिकाबिज्जु परें फूलन भयो लरझर । सुकबि ज्ञान की आग लगायँ फलित दियो कर ।। ३५५: ।। .. . बालबेलि सूखी सुखद इहिँ रूखे रुख घाम । । | फेर डहडही कीजिये सुरस साँचि घनस्याम ॥ २९६ ॥ | सुरस सींचि घनस्याम फेर कछु हरी कीजिये । बिरहदवागि बुझाइ सरो फेर दीजिये। पुलकप्रफुल्लित करहु बेगि चलि सँग इहिँ काला। सुकाब सफल खैहै जद्यपि सूखी है बाला ॥ ३५६ ॥ देखत चुरे कपूर ज्यौं उपै जाय जिन लाल । । छन छन होति खरी खरी छीन छबीली बाल ॥ २९७ ॥ छीन छबीली चाल होत दिनदिन अधिकाई । सितता व्यापी जात गई. । अँग की अरुनाई ॥ तहाँ लगी बिरहाग नाहि क्यों चलि कै पेखत। सुकवि सुन्न हूँ जाय न प्यारी देखत देखत ॥ ३५७ ॥ ......... कहा कहाँ वाकी दसा हरि प्राननि के ईस । । बिरहज्वाल जरिवो लंखें मरिबो भयो असीस ॥ २९८॥ मरिव भयो असीस अमी सो माहुर जानौं । लै कृपान कोउ हनै ताहि उपकारी मान ॥ अजहूँ चलिये सुकबि मैं हूँ आनँद महा लहाँ । छाती भ- रि भरि जात दसा वाकी कहा कहाँ ॥ ३५८ ॥

  • आलवान घेवला ॥ गोपियों की वृक्ति उद्धवप्रति ।।