5.33skus.. 4, विहाराविहार ।। | *छन छन में खटकति सु हिय खरी भीर मैं जात ।। कहि जु चली अन हीं चितै ओठन ही मैं बात ॥ ३१३ ॥ आठनि ही में बात कहा धाँ कहि गई नागरि । सारी अँचात ग्रीव
- हिलावत रूपउजागर ॥ वह अलकने की लहर लहर लहरावात तन में ।
- सुकवि चलन उकसँहँ उर कसकत छन छन मैं ॥ ३८४ ॥ .
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- चिलक चिकनई चटक स लफति सिटक ल आय ।। नारि सलोनी साँवरी नागिन ल डसि जाय ।। ३१४ ॥ नागिन ल डास जाय हाय चलि टेढी बाँकी । सीसफूलमनिप्रभापुंज चमचमत निसाँकी ।। ::कबहुँ काँचरीराहत सहित सुकुमारतामई । सुकवि न जयो निकट भलि लखि चिलक चिकनई ॥ ३८५ ॥ .- - 5*--.. .
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l, a | - डग कुडगति सी चलि ठठकि चितई चली निहारि । लिये जाति चित चोरटी वह गोरटी नारि ।। ३१५॥ वहे गोरटी नारि सु चूँघट वदन छिपाये । मन्द मन्द पग धरति घाघरा
- घर घुमाये । आँखि झपाये ग्रीव झुकाये दूजी रति सी । सुकवि छोनि चि- ।।
३ त लिये जाति चलि डग कुडगात सी ॥ ३८६ ॥ . से यह टोहार प्रवदन्ट्रिया में हो है ॥ • नट = येत = पतलो ड़ो । (अप्रसिद्ध शब्द हैं ) । कब वाचर रवित कथ’ कोइरो नहित } कादरी = क चुकी अयया माय की चुन्नी ॥ | 4: या टोदा अनवरन्द्रिका ची देवकीन नटोका में नहीं है ॥ ६ चोरटी = चोटी, गोरटी = गोरी॥ राजपुताना जयपुर की भाषा में गोरटी == गोरडी ॥ जैमें मेरे पृचरित ( दत्तकवि ) की कविता ।
- * * पाती हैं मोर प नाई कान्हा चौकड़ फिस्को द गाम्या मनभावो । धई ग्योमता
- ॥ कर। * गृक्षर हैं । उतपात या 'कंच ने जगावो । मंग में छो भायनो म ाथै को।
१ ४ ५ र म मिचकार ? यंगस्न नचाइन् ।' कन्यो । केटा को ॐ कटें हैं या कर लो। अ आ इ ई * * *म दा के दो" अन् भार में जिन ग के अन्त में हो वा ५) १ २ ३ कमरे म है में हीरो इरिट, कोरी : रिटी ६ - . vir 4 9 4 ==4, =
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