। विहाराबहार।। भौंह उँचै आँचर उलट मोरि मोरि मुहँ मोरि । नीठि नीठि भीतर गई दीठि दीठि सौ जोरि ।। ३१६ ॥ दीठ दीठि सौं जोरि जोरि कै चोरि चोरि जिय। छोरि छोरि पुनि धीरज । । क रस घोरि धोरि हिय । सुकवि चली अगिराइ कछुक उचकाइ सी कुचै ।
- वेसर क फरकाइ कपोलन हँसि भौंह उचै ॥ ३८७ ॥ ....।
रह्यो सोहे मिलनो रह्यो यो कहि गहे मरोर ।। उत दै सखि हिँ उराहनो इत चितई मो ओर ॥३१७॥ 'इत चितई मो ओर हाय जादू सो डारयो । होठन हीं कछु कहति मंत्र
- मोहन जनु मारयो । रोम रोम मद् भन्यो तबै स जात नहिँ कह्यो। ज़ागत
सोवत सुकवि नैन वह रूप छकि रह्यो ॥ ३८ ॥ चंदरी श्याम सतार नभ मुख ससि की अनुहारि । नेह दबावत नींद मैं निराख निसा सी नारि ॥ ३१८॥ | निरखि निसा सी नारि चहूँ दिस कळू न सूझै । मन्थर सब अँग होत कौन स को का बूझै ॥ सुकवि होस नहिँ रहत कहाँ अट कुंडल मुंदरी ।। वहै कहानी भली लगै लखि कारी चुंदरी ॥ ३८९ ॥
- फैर कछु करि पौरि तें फिरि चितई मुसुकाये । ।
| आई जामन लेनः क ने चली जमाय ॥ ३१९ ॥
- * नेहै चली ज़माय ई सी डीठ फिरावति । मनमथु स मन, मथति
- रातही को कहानी भी अच्छी लगती है। * जामन = ज़ोरन । दही जमाने के लिए जो दूध में ।
में थोड़ा दही या और कोई खटाई दी जाती है उसे जामन कहते हैं। राजपुतानी जावण' ॥ ६ जामुन के
- लेने आई थी पर नेह को जमा मन को मथ मुसुकानि का मठा पिलर माखन से जी को ले गई ।