पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१८

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बिहारीबिहार का उपोद्घात ।। सीसमुकुट काटिकाछनी करमुरली उरमाल । इहिँ चानक मोमन बसहु सदा बिहारी लाल ।, अतिशय आनन्द का दिपय है कि आज मैं इस ग्रन्य को समाप्त करके इसकी भूमिका लिखने

  • वैटा हूं। जिनको प्रेरणा से यह ग्रय वना है रचना के समय भी जिनकै रङ्ग में डूब डूब मैं प्रफुल्लित

में होता था, एक मात्र जिनके हो भरोसे इस रस समुद्र में मैंने अपनी कविता की डींगी छोड़ दी है, एक

  • मात्र जिनका हो सम्बन्ध कविता का जीवन है और केवल जिनका चरण ही सैरे ऐसे अशरण का शरण है
  • सनी नन्दनन्दन ने अाज यह दिन दिखलाया कि मैं बिहारी कवि के सातसमुद्रस्वरूप सात सौ दोहों

। पर कुण्डलिया की पुन्नबांध इस पार से उस पार तक दो चार वेर दौड़ शीतल निवास ले उपोद्घात लिने के लिये लेखनी को चङ्गुल के

  • यह ब्रजभापा को कविता के रस मात्र की सन्मति है कि बिहारी जी के दोहे अनूठे है । * इन
  • दोहों के छोटे छोटे आकार में उतनी बातें भरी हैं जो प्राय: बड़े बड़े कवित्तों में नहीं देख पड़तीं ।।
  • भहन त्रासात मुख नटात आँखिन स तपटाति ।

ऐच झुड़ावति कर ईंची आगें वति जाति ॥

  • मुँह धोवति एड़ी घसति हँसते असँगवाते तीर ।।

धसति न इन्दीवरनयन कालिन्दी के नार ।। कहत नटत रीझत खिझत मिलत खिलंत लजियात् ।। भरे भौन में करत हे नैननि में सच बात ॥ • जैसे मेरे देऊळवामी पिता जी ने निज रचित मुमस्यापत्ति प्रकाश में लिखा है कि -"तुलसी 5 मई जू की शुभ धपाई आए, जग माहि चटनी समान कियों के विकास । टोहा त्यो विहारी हैं के २ फैमि र प र तारागन में फून्नि फेल भरि के काम में भूदान जू के भूरि भजन भाये तैसे मेर में उमडू धू भरून कई =६ स । पद्माकर को कमित्त रदि सो विकाग्री दत्त नाम कवि हू की ।

  • हुई चन्द्रमा एक प्रकास ।