बिहारीविहार ।। में जियरा जनु जाति ॥ मान न मानन मान मान मनु मोरात, नहिँ मुख । जान न जान न जान लगी कोउ सुकाव हरहु दुख ॥ ४२८ ॥.. . - बहके सब जियकी कहत ठौर कुठौर गनै न । छन औरै छन और से ये छबिछाके नैन । ३५६॥ ये छाबछाके नैन झुकत झूमत मतवारे । ठठाक २ झिपि अटकि अ-
- टकि अरुझत अनिारे ॥ प्रेमबारुनी पिये अरुन है घूमत गहके । सुकबि.
- सम्हार सम्हरत नहिँ अव नैना बहके ॥ ४२९ ॥ ।
। नैक उतै उठि बैठिये कहा रहे गहि गेहु ।। छुटी जात *नहँदी छनक महँदी सूखने देहु ॥ ३४७ ॥
- महँदी सूखन देह होत यह पुनि पुनि गीली । अरुनाई नहिँ चढ़त होत .
| ॐ अग की दुति पीली ॥ सारी सरकी जात धूप हू कैंपत अङ्ग साठ । सकबि । जाउँ वलि टहरहु एजू नेक उतै उठिं ॥ ४३० ॥ fचितवन रूखे इगनि की हाँसी बिन मुसकान । मान जनायौ मानिनी जान लियौ पिय जान* ॥ ३५८॥ जान लियौ पिय जान सुनत गिनती के बैना । नाहि नेकु समुहात इतै उत अटकत नैना॥ वैठति त्यौं रुख मोरि ग्रीव फेरनि कै कितवन+ । सुकबि पार्दै नख लेखनि देखति रुकि रुकि चितवन ॥ ४३१ ॥ पतिऋतु अवगुन गुन बढ़तु मान माह कौ सीत । जात कठिन व्है अति गामंदी रमनीमननवनीत ॥ ३५९ ॥:: रमनीमननवनीत सीत लाह ठिठुरि गयोः अति । बिरहनिसा बहुं बढ़ी
- नहँ पर लगाई। यह दोहा हरिप्रसाद के ग्रन्थ में नही है। ६ जान = सुजान = चतुर ।
+ कितव = कपट । $ यह दोहा अनवंरचन्द्रिका में नहीं है। पादौ मृदु भौ ।' , . :
= = ift T a l