पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१९४

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विहारीविहार । कहा लेहु गे खेल में तजो अटपटी बात। नैक हँसाँहीं हैं भई भौंहें सौहँ खात ।। ३७३ । | भौहें सहँ खात भई हैं नैक हँसाहूँ। तुम भटकौहें बचन बोलि हरि करत रिसौहें ॥ पुनि उभरे पै मान उरहनो हम हिँ देहु गे । राधा रूठे सुकवि हहा सुख कहा लेहुगे ॥ ४४७ ॥ . चल चलें छुटि जाय गौ हठ रावरे सँकोच ।। खरे चढ़ाये हे ते अब आये लोचन लोचं ॥ ३७४ ॥ . ये लोचन लोच भौंह हू जुगल सिधानी । व्यङ्ग ढङ्ग तजि वानी हू कछु । कछ मधुरानी । हास हु कियो विलास कपोलन भाव रँग रले । अव न कीजि- । ये देर सुकवि मोसँग चल चले ।। ४४८ ॥ अनरस हू रस पाइये रसिक रसीली पास । जैसे सॉठे की कठिन गाँठी भरी मिठास ॥ ३७५ ॥ ३ गाँठ भरी मिठास और की बात कही है। गरबीली के गरव हु मैं त्यै

  • रंग रहा है ।। टेड़े सुधे वैन होउ किन कोप प्रेम बसे । रसिक रसीली निकट
  • सुकत्रि क कळू न अनरस ।। ४४६ ॥

| --क्या हैं सह बात न लगे थाके भेद उपाय ।। हठददगढ़गढ़वै सु चलि लीजै सुसँग लगाये ।। ३७६ ॥

  • . ० रा उ । ” एम पर न ३ लान्त यों लिखते हैं । गुरु मान मूवी का वचन नायक में ।

। भोहि । अरु तुमार न ल ४३ सुइ भेद । यन् । हट दृद मट्ट को आप गाटे ही चन्न ॥ ॐ रंग शुई कर दी। यक ) *पालद्धार स्पष्ट है । ठ ६ गद का प अ सरंग पद सेप ।

  • * * * । । इरंग के नई ६ गदै दाढ़े को कहते हैं ॥ " अथवा क्यी ४ मुह == किमी

। १ ३६ * * * ८१ ८ फदि ई दुर्गादत्त कदि } कृत टिप्पी भ” है ।। --