पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१९६

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| विहारविहार ।। | परयों परोसिनि पाप सवै. तजि गाँव पराई। सौ सौ करत उपाय सखी ढिग सकत न आई । होइ मौत की मौत जाइ जो ताके नीरे । सुकवि कोस पै सुखि जातः ख़स चन्दन सीरे, ।।::४५४ ::: :: :: :: : आड़े दै आले वसन जाड़े हूँ की राति। । साहस के कै नेहवंस सखी सबै ढिग जाति ॥ ३८१ ॥ सखी सबै ढिग जाति नीर छींटति उसीर के । चरचति चन्दन अङ्ग हरन अंति तापः पीर के विरहअगिनसन्ताप सुकाव इमि हलचल पड़े । कि कि डरि हरि चलतः सखी अम्वरदै आड़े ॥:४५-५: ।। :: .........। आँधाई सीसी सु लखि विरह वरति विललात ।। वीच हिँ सूखि गुलाव ग छींटौं छुई न गातः ।। ३८२ ॥ छींटो कुई न गात सखि धौं कितै विलानी । सीसी हू भई ट्रक ट्रक चट

  • चट चटकांनी ॥ हाथ फफोले परे चमकि संव सखी पराई । वजर परो मैं

सुकवि आज सीसी धाई ॥ ४५६ ॥ ;:....::. . जिाहं निदाघ दुपहर रहै भई माह की राति । तिहिं उसीर की रावटी खरी ओवटी जाति ॥ ३८३ ॥ खरी विटी जाति माघ की अधी-रजनी । पच्छिम की हिमवायु लुह सी मानत सजनी । हिमजड़ज़ल हु अँगार होत कर राखत ही तिहिं। सुकवि दस कहि सके कौन भयो स्यामविरह जिहिं । '४५७ ॥ . विकसत नववल्लीकुसुम निकसत परिमल पाय। परसि पुजारति विरहिहिय वरास रहे की वाय ॥ ३८४ः ।। | ॐ शराई :: भा... ... • भर में समय की इग, विक्रम हुए नवीकरुम को याके निकलती है तो भी विरई के ३८