पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१९९

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| बिहारीविहार।। बनबाटनि पिकवटपरी ताकि बिहिनमतमैन । :: “ .

  • कुहौ कुहौ कहि कहि उठे करि करि राते नैन। ३९२ ।।

| करि करि रात नैन मोरि गरदन मुहँ फारति । छिपि रसालदलजाले काल सी सर्रत धारति ॥ पर फरफर फरराय हलाहल से घालति तन। भांगहु भा- गहु सुकवि कोकिला व्यापी बनवन ॥४६६ ।।: 3:;:: :: :: : | दुसह विरह दारुन दसा रह्यो न और उपाय । ..... | .:..जात जात. जिय राखिये प्रिय की बात सुनायः॥ ३९३॥ ':. पिय की बात सुनाव आइने की ६ असा । अलप औधि दिखराये कि विधि रखिये साँसा ॥ बैद सबै थोके गये मंन्त्र हूँ की न जुगत लहं। सु- । कवि पीय तसवीर लखति जीयति दुखदुःसह.॥ ४६७ ॥ ......

। कहे ज़ बुचन बियोगिनी बिरहबिकलअकुलाय। में किये नको असुवासहित सुवा ते बोल सुनाय ॥ ३९४.।... - सुआ ते बोल सुनाय कौन धौं नाहिँ रुये। हाय हाय करि कौन कठिन हिय नहिँ दरकाये ॥ सखिन विलाप उचारि नाँहि जिये कौन के दहे । सु- | कवि मूरंछित भयो वचन सुने तासु के कहे ॥ ४६८ }i ::

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सु ते बोल सुनाय हाय पाथर दरकाये । हरे विपिन झरसायनदी नद । नीर सुखाये ॥ सुकवि वीचविच पीयनाम सुंनि सुख कळू लहे। नाहि अलै

  • है जात वचन सुनि कीर के कहे ॥ ४६९ ॥

छ : | ॐ कुही कुही = मारो मारे ।( कुश्तन, फारसी, इसमें श से हैं हो गया है ):-:-..-.... = = == = == = = =