पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२०२

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विहारविहार ।। मूंद बूंद ही धोइ चहूं काजर विथुरायो । निज आसन हित मनहूँ कपोल में मसान बनायो । अधिक सुखायो तनहिँ बिरह की धूनी सी धरि । ॐ सुकवि मिलन ही मोछ एक अवलम्ब रहे करि ॥ ४७६ ॥ . : कागद पर लिखत न बनै कहत सँदेस लजात । । कहिहै सब तेरा हियो मेरे हिय की बात ।। ४०२ ॥ मेरे हिय की बात सर्व काहहे तेरो हिय । सोमन मेढिग नाहिँ साऊ

  • जानत है ताजिय ॥ झुर सि रही हूँ अङ्ग अङ्ग मैं विरहअगिन झर । सुकवि :

लिखें किमि बात बड़ी छोटे कागद पर ॥ ४७७ ।। तर झरसी ऊपर गरी कज्जलजल छिरकाय ।..: । पिय पाती बिनहीं लिखी बाँची बिरहवलाय ॥ ४०३ ।। बाँची विरवलाय पीय ता विन वाँच । वैन भय थिर अँसुवन के जनु ऊधम माँचे । सुकवि सॉस के झाक परी छने ही करपरसी । उड़ी उड़ी ही फिरत गरी पाती तर झरसी ॥ ४७८ ॥ विरहावकल विन ही लिखी पाती दुई पठाय। अङ्क विना है याँ सुचित सुने बॉचतु जाय ।। ४०४ । । । सूने वॉचतु जाय विना आखिर हू पाती । जरी गरी तिहिँ देखि दहि दर- कत है छाता मुख ते कढ़त न चैन नैन आँसू भये गहगह । चीटी देखते सुकवि और दुःसह भयो विरह ॥ ४७६ ॥ | कर ले चमि चाय सिर उर लगाय भुज भेटि।.. लहिं पाती पिय की लिखी बाँचति धरति समेटि ।। ४०५ ।।। • #भ मार्भ इत् भक्ति मार्ग में परमप्राप्तिी मोक्ष है। - - - -