पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२०३

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बिहारीबिहार।। २० बाँचति धरति समेटि फेर लै लै कै खोलति । उलट पुलाट कै वाँचि मंनाहि । मन ध कछु बोलति ।। होइ रोमांचित हिय लगाई कै लगबत है गर। सुकवि डहडही तिया फिराति पाती लीनें कर ।। ४८० ।। . . गराती राते हिये प्रीतम लिखी बनाय । . :: :: :. पाती * काती बिरह की छाती रही लगाय॥ ४०६ ॥ छाती रही लगाय हिये कों मनहुँ पढ़ावति । पियकरआखर छाप किर्धी उर तिलक लगावति ॥ कुचगिरिगढ़ बिच राखति जनु कछु मुद सों माँती । सुकाव वियोगविगारी हू भई जिय रँगराती ॥ ४८१ ॥ नाचि अचानक ही उठे बिन पावस बन मोर ।. .. जानति हाँ नंदित करी यह दिस नन्दकिसोर ॥ ४०७॥ । | यह दिस. नन्दकिसोर अवसि आये हैं आलीं । सूखे तरु हूं. हरे भये उड़ि

  • चली बकाली ॥ सुकवि बयारि हु बही सुसीतल लहि बर बानक । बिनु

+ घनस्याम हिँ मोर उठ हिँ क्यों नाँचि अचानक ॥ ४८२ ।। । 1354AAA | यह दिस नन्दकिसोर बिना क्यों प्यारी लागे । आजु लखत या ओर

  • आप ही जिय अनुरागै ॥ सब तरुवर गये फूलि करत कल्लोल हंसबक । सुक-

वि सेरे हू वाम अङ्ग उड़े नॉचि अचानक ॥ ४८३ ॥ कोटि जतन कोऊ करी तन की तपति न जाय । जौ लॊ भीजे चार लौं है न प्यौ लपट्टाय ॥ ४०८ ॥ ३ काती = कुत्ती, एक प्रकार की तरवार । अथवा जैसे चरखे का काता सूत होता है वैसे ही यह ।

  • विरह की काती है। विरह चक्र से निर्मित है है . घनश्याम = भैध औ श्री कम है ।