पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२०४

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| विहारीविहार । रहे न प्यो लपटाय डारि गर माला कर की । होय होय सों कृाय छाँडि सुधि पीताम्बर की विनु पिय प्यारे पीर परेखो जात न मन को । सुकवि गरूर करें किन काऊ कोरि जतन को ॥ १४ ॥ सोवत सपने स्यासघन हिलिमिलि हरत वियोग ।। तब ही टरि कित हू गई नदी * नींदन जोग ।। ४०९ ॥ नींद नींदन जोग क्रत हुँ चलि गई अभागी । बाँह पसारी ज्यों ही मैं हरिभेंटन लागी । झनकि उठ्यो यह कङ्कन जनु सव रस काँ खोवत ।। सुकवि हाय हरि मिले नाँहिँ सपने हूँ सोवत ॥ ४८५ ॥ जब जब वे साध कीजिये तब तब सब सुधि जाहिँ । आँखन १ आँख लगी रहँ २ आँखै लागति नाहिं ।। ४१० ॥ | ३ अाँखे लागत नाहिं लगी ४ आँखे कछु ऐसी । आँखें जानति ५ आँख लगे सुखसीमा जैसी । भई अबै बहु ६ आँख आँख में ७ धूरि परी तव ।। लुकाव = आँख नहिं हती आँख आँखनि लागी जब ।। ४८६ ॥ सघन कुज छाया सुखद सीतल मन्द सार ।। मन व्है जात अज वहै । वा जमुना के तीर ॥ ४११ ।। १ नोट ' - निन्दा करने योग्य ॥ | | ग्रां में सांप निन्न राती ४ । ३ पनुया नहीं पड़ती। ३ नींद न आती है।

। ५, कटा नारी । ६ समझ । 5 अक मारी गई । ८ होम न था !! ।

५५५ । असुन" ए ट प कितने ? यः प्रद निकालते हैं कि ‘विहारी' इजदाम न ६ बजे दाई है 6 ‘ा ' नै किन्तु वा सुना' पते । परन्तु इन में भृन्न जान पड़ती । । । ८ ' ' पदभेद: । ॐ शिनु नभेदत्तक । अत् इम कामय । ६ इन नि । ६ । बन जाता है । ** मन के निदेय ने कहा 'य' या

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