पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२०५

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बिहारीबिहार ।। वा जमुना के तीर अजहुँ मुरली जनु बाजत । बंसीवट के ओट अज जनु स्याम विराजत ॥ नाथ नाथ कहि फिरत अजहुँ गोपी जनु बन बने । सुकवि हियो हरिलेत कंदम तरुवर सबै सघन ॥ ४८७ ॥ पुनः | वा जमुना के तीर गयो जो नाँहि अभागो । धिग जनम्यो जग माहिँ नाहिँ रंच हु सुख पागो ॥ जनम जनम दुख पाइ सुकवि धारयो जो नरतन । | लख्यो न सेवाकुञ्ज तमालन वृन्द बन सघन ॥ ४८८ ॥ वा जमुना के तीर स्याम जनु बेनु बजावत । मधुरमालतीकुञ्जन तें निकरे से आवत ॥ कान्ह कान्ह गोहराइ ढूंढिबे सुकवि करत मन । वृन्दावन मैं

  • चरसि रह्यो है अज हूँ रसधन ॥ ४८६ ॥

| जहाँ जहाँ ठाढो लख्यो स्याम सुभगसिरमौर ।। | उन हूँ बिन छन गहि रहत नैन अर्जी वह ठौर ॥ ४१२ ॥ नैन अज वह ठौर ठमकि ही जात हठीले । आँसुन झर बरसाय गहत हरिरंग रसीले ॥ डिगत डिगाये नाहिँ रहत तजि पल तहाँ तहाँ । सुकवि सलोनो स्याम लख्यो ठाढो जहाँ जहाँ ॥ ४९० ॥ | सोवत जागत सुपनबस रस रिस चैन कुचैन। सुरति स्यामघन की सुरत बिसरे हू विसरै न । ४१३ ॥ विसरे हू विसरै न कलँगिया दोऊ दिसं लटकी । लकुट पीतपटफहर। - झुकनि पुनि मोरमुकट की । अधरधरी मुरलिया सुमिरि हिय तेंहिँ सँग । पागत । सुकवि नैन हैं हटत न सो छवि सोवत जागतं ॥ ४९:१ ॥ विसरे हू विसरै न किते जतनन करि हारी । किते टोटका जन्त्र मन्त्र