पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२०७

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बिहारीबिहार ।। हूलत हीतल ॥ गुलगुल गादी गैंद गुलाब हु मन हिँ मरोरै । सुकबि सखी संगीत सवै विधि द्वे गये औरै ॥ ४६७ ॥ | हाँ हाँ बौरी बिरहवस कै बौरी सब गाम । । । कहा जानि ये कहते हैं ससि हिँ सीतकरनामे ॥ ४१६ ॥ ससि हिँ सीतकर नाम कहा ध जानि बतावत । मार्को तो यह हाय ज्वालमालान जरावत ॥ सुकवि नाहिँ परतच्छ बाधि परमान कह्यौ री । चौरो है सब गाम किध भई हाँ ही चौरी ॥ ४९८ ॥ ह्याँ तँ हाँ हाँ तें यहाँ नैको धरति न धीर । | निसिदिन * डाढ़ी सी रहै बाढी गाढी पीर ॥ ४१७ ॥ चाढ़ी गाढ़ी पीर किहूँ विधि. जक न परत है। उठि बैठत पुनि बैंठि उठत धीरज न धरत है ॥ तरफरात पुनि परी परी लै करवट दुहुँ घाँ । सुकवि कहूँ नहिँ चैन डोलि हारी ह्वाँ ते ह्याँ ॥ ४६६ ॥ | इस आवति चाल जाति उत चली छसातिक हाथ । . चढ़ी हिंडोरे से रहै लगी उसासनिसाथ ॥ ४१८ ॥ | लगी उसासनि साथ जाति है फूलछरी सी । सिर घूमत काहे बैठि जात जनु डरी मरी सी ॥ ज़रद हरद सी भई हीय कर धरि घबरावति । सुकवि नई जनु तीय हिंडोरे चढ़ि इत आवति ॥ ५०० ॥ फिरि फिर बूझत कहि कहा कह्यो साँवरेगात। . कहा करत देखे कहाँ अली चली क्या बात ।। ४१९ ।। चली अली क्यूँ बात कृरी कैसी किहिँ के सँग । कब धौं कैसे भई कौन धै। र यह दोहा हरि प्रसाद के ग्रन्थ में नहीं है। , ..

३ डाढौ = दंग्ध