पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२०८

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विहारविहार ।। | १२५ | • किया कहा इँग । चुप हूँ बेटी कहा मोहि कळु हेतु न सूझत । घरी वैक । है गई सुकाव ताहि फिर फिर वुझते ॥ ५०१ ॥ जोन्ह नहीं यह तस चहै कियौ जु जगतनिकेत ।। होत उदै ससि के भयो मानौ + ससिहर सेत ॥ ४२० ॥ मानो ससिहर सेत होइ रसना लपकावत । विधु विषवरखा चाखि चौगुनो जोर जमावत ।। मलयपवन कै असन सहसमुख विरहि मिलन चह । सुकाव में लखो यह सर्पराज है जोन्ह नहीं यह ॥ ५०२ ।। तजी संक सकुचति न चित बोलति बाक कुवाक । छिन + छनदा छाकी रहति छुटत न छन छविछाका ॥४२१॥ छुटत न छन छबिछाक छवीली छकी रहति है । छला छिगुनियाँ छोर छजावत छलन गहात है ॥ छमछम के थिात चलति छटी पायल दो छजी । सुकवि हिये ज्यों छाछ सथति तिय सङ्ग सव तजी ॥ ५०३ ।। कर के मड़े कुसुम ली गई विरह कम्हिलाय ।। सदा समीपनि सखिनि हूँ नीठि पिछानी जाय ॥ ४२२ ॥ नीति पिछानी जाय गई ऐसी दुवराई । अन्तरङ्गिनी सखीन हूँ की मति वराई । हुनत मदन हूँ चीन्हि कोऊ विधि व्हें के नीड़े । सुकवि अंग अँग भये कलम ज्यों कर के मीडे ।। ५.०१४ ।।

० ३ दी। अनार एन्द्रिका घोर देयकोनन्टून टीका में नहीं है । ममिहर=र के ।

: : हरिभाट ऊ ग्रन्थ में नहीं है । ४ इनदा = रात { मुं० शुरुदा ) ।।