पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२०९

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बिहारीबिहारः।

  • नेक न जानी पुरति यौं परयौ बिरह तन छाम।

उठति दिया लौं नादि हरि लियँ तिहारो नाम ॥ ४२३ ।। लियँ तिहारो नाम लहरि सी उठात छनहिँ छन । सदा मूरछा माहिँ परी ही रहति दुखिततन ॥ सुकबि थाकि गई जुगुति कति सब सखी स-

  • यानी । जीयत है ध नाहिँ परत है नेक नजानी ॥ ५०५ ॥

पुन: नाम कोऊ जौ लौ नहिँ ऊँचे सुरस भाषै। तौ ल सजग न होत जतन । केतो कोऊ राषै ॥ सुमन सेज पै सुमनसाल सी तिया समानी । कैसी है। कित अहै सुकवि हू नेक न जानी ॥ ५०६ ॥

  • करी बिरह ऐसी तऊ गैल न छाँड़तु नीच ।

दीने हू चसमा चखन चाहै लखै न मीच +॥ ४२४॥ चाहै लखै न मीच फारि जऊ नैन निहारे। चहूँ टटोरत फिरै तऊ नाहिँ न निरधारै ॥ या ही साँ दुख बढ़त सुकवि औरो घरी घरी। + जियै मरै नहिँ हाय विरह ऐसी कछू करी ॥ ५०७ ॥ . | मीच परयो धोखे कबहुँक सखियन दिस धावत । समुझि फिरत पुन दिस दिस हुँदूत तवतुं न पावत ॥ घरी घरी जिय जरी जरी तिय जनु मरी में मरी । डरी डरी वह सुकबि विरह दोऊ दृग ढरी करी ॥ ५०८ ॥ ॐ यह दोहा मे० ३०१, में एकवेर चुका है। इस पर यह दूसरी कुण्डलिया है । स्वयं लल्लू लाल ।

  • की छपवाई लाल चन्द्रिका टीका वाली पोथी में यह सही दो वैर है इसलिये इस ग्रन्थ में भी दो वेर

म रखा है । लल्लू लाल ने आज़म शाही क्रम रखा है सो यह उसी की भूल है ॥ : वुतते हुए दिये का है । अचानक एक वैर उत्तजित हो उठना दिये का नँदना कहलाता है।

  • यह भाप उर्दू में भी है जैसे “ ढूंढ़ती फिरती कजा थी मैं न था ” ॥
  • मीच == मृत्यु । संस्कृत के ‘त्व' का प्राकृत में ‘च्च’ हो जाता है जैसे सत्यम् = सम्, नृत्यम् = ण

म धम्, नृत्यु = मिचू ॥ इत्यादि ॥ + उर्दू * न मरते हैं न जीते हैं अजब हालत इमारी है। पुनः