पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२१६

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चिहारविहार।। कहत सबै बँदी दिये आँक दसगुन होत । तियलिलार वृंदी दिये अगनित बढ़त उदोत ॥ ४४५ ॥ अगनित चढ़त उदात लखहु इक बँदी दीने । कह्यो सुन्ने को ऐसो गुन । का गनित नवीने ॥ लाख कोटि गुनि छवि को पुंज करत है लहलह । सुकवि

  • जोत सी नीरस है जो दसगुन ही कह ।। ५३२ ॥
  • भाल लाल बँदी ललन आखत रहे विराजि ।

इन्दुकला कुज मैं बसी मनो राहुभय भाजि ॥ ४४६॥ ।

  • मन राहुभये भाजि भौम को सरनो लीनो । तियमुख ग्रहन न होत

में वहाँ यह निहचै कीनो ॥ वासो सोऊ ह्याँ आइ डरयो तजि सुरपुरलेभा । । सुकवि भाँहधनु दृगसर ढिग मेले करि छोभा ।। ५३३ ॥ सवै सुहाये ही लगें वसे सहाये ठाम ।। गोरे मुहँ वेंदी लसै अरुन पीत सित स्याम ॥ ४४७ ।। अरुन पीत सित स्याम गुलावी हरी बैंगनी । केसरिया चम्पई सुरमई । करत छवि घनी ॥ सुकवि तिकोने गोल खड़े आड़े हु कढ़ाये। तिलक रसीले वदन लगते हैं सवे सुहाये ॥ ५३४ ॥ तियमुख लखि हीराजरी वृंदी वढो विनोद ।। सुतसनेह मान लिये विधु पूरन बुध गोद ।। ४४८ ॥ गोद लिये बुध सबै सोक कालिमा मिटाई । नैन खिलौना खखन ले जनु । यह दोहा अलवरचटिका में नहीं है । * हे ललन ।।

४ दरवन्द्रिका में नहीं है । यद्यपि बुद्ध का एरित वर्ष में तथापि गरि का बेटा गो मान

५ र ६ उपमा ३ । जैसे विभिदा में "भानो गोद चन्द की सुनै सुत १८ को वह इनाक के ।