पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२२०

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पुनः विहारविहार । रहत टेरे ना ।। झुकि झुकि उझकत सङ्ग लिये जनु जिय अलबेलन । स- । “मर सुकवि स करत समर के सिखये खेलने ॥ ५४५ ॥ .. नागर नरन सिकार करत ये काननचारी । बिनु गुन भौंहकमान वान मारत वटपारी ।। काजरधारकटार लिये दृग चोरी विष थे। सुकवि हु के हिय । कृसकत नीके खलन सिखये ॥ ५४६ ॥ सायकसम घायक नयन बँगे त्रिविध सँग गात । झेखी विलखि दुरि जात जल लखि जलजात लजात ॥४५९॥ लखि जलजात लजात वृडि जनु गये नीर मैं । कानन भागे हिरन उड़े खञ्जन समीर मैं ॥ धरसत रस की धार सुकवि पिय के सुखदायक । हलके परि गये देखि इन्हें मनमथ के सायक ॥ ५४७ ।। वर जीते सर मैन के पैसे देखे में न ।...। | हरिनी के नैनान ते हार नीके ये नैन । ४६० ॥ हरि नाके ये नैन मैनसर का इहिँ आगे । हलके है है परे अहँ धे, कहाँ । अभागे । कञ्च संकुचि गड़ि गये मीन तलफत करि फरफर। खञ्जन हूँ उड़ि गये सुकवि लखि इनकी छवि वर ॥ ५४८ ॥ काठे जानि न संग्रहे मन मॅहनिकसे वैन ।। याही ते मानो किये वातनि क विधि नैन । ४६१ ।। वातन को विधि नैन करी हे अजव वनावट । विनासोर ही करत विविध एम मान्म कुलट नायिका कते हैं। कदाचित् ‘नरनि' इम बहुवचन में उनने बहुत पुरुषों

  • * < । नायिका समझी हो पर यहां बहुत पुरुयों को चाहना नहीं प्रगट होता यह दृ-

म ३६४ कि उम्र में बहुत दुरुप के हुदय में कमुकती हो यदि रेनुन मिग्ये इम पद में ३ कुरा इन 5 भ क ना ३ ४ ३ प्रथम भूमर का अर्थ उड़ और दूर समर का अयं काम- । । है । ' उर, शर ी विशेष हैं। $ दर दोहा देयकीनंदन टीका में नर है। 44- =

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