पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२२२

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विहारविहार । । मन कुलङ्ग झकझरि मृरछित रसो करि डारयो । हिलि मिलि सकत न क) हाय वेदत्र इहिँ माया ॥ कैसे टोना भरी कौन से विप स साँची ।

  • डीट परी मम गेल सुकवि है ऊँची नीची ५५३ ॥

फूलै फरकत लै फरी पल कटाच्छकरवार । करत वचावत विय*नयन-पायक घाय हजार ॥ ४६६ ॥ घाय हजारन करत हाय चचिये धे कैसे । करि पैतरा रचत पूरे हठि व- धिकन जैसे ॥ अतिसय फुरती भरे करत धीरज निरमूले । सुकवि रसिक हिय हनत आपु आनँद सा फूलै ।। ५.५४ ॥ तिय कत कमनैती पढ़ी बिन जिह भौंहकमान ।। चित चल वेझ चुकत नहिं बंकविलोकनवान ।। ४६७॥ वक विलोकन वान एंचि ध कव वरसावति । करत अधमरे जीय पिया सन पुनि तरसावति ।। मारि जियावति पुनि मारति बस करनि पीयजिये ।

  • सुकवि कौन से गुरू निकट यह रीति पढ़ी तिय ॥ ५५५ ॥

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= == == = चमचमात चंचल नयन विच चूंघट पट झीन । मानहुँ सुरसरिता विमल जल उछरत जुग मीन । ४६८ । । जल उच्चरत जुग मन मनहूँ.नहिं ऊपर आवत । पलक परे जनु डुवि ड्रवि निज देह छिपात ॥ तुकवि कबहुँ थिर रहत कबहुँ चञ्चलता नहिं कम । फरफरत यह ट लखें चमकीले चमचम ॥ ५५६ ॥ = | ॐ श् िच nि ' । • पायक : ग्रिहो।।

: देर नरन्ट्रिक में न" । ६६ = ६६ । यि = व्या:प्रवदा ।