पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२२७

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24.4.4.4.4.4.4 4.4.4 8 4.44, 44444443344 विहारविहार । . छवि छाई । कहूँ सेवार रु कहूँ मीन जुग, फसे नवीने । सुकवि, लेखो झुल- मुली झलक झलकत पद क्वीनं ॥५७३ ॥ :...:.::. :: :: :: :: : नैंक हँसौहाँ बानि तजि लख्यो परत मखं नीठि ... चौका चमकनि चौंध में परति चौध सी दीठि ॥ ४८३॥ | परत चाँध, सी दीठि चमक है ऐसी चमचम। झपकत झुक झुक जात झमकि कै दोउ, दृग दम दम । चले दूर साँ आवत हैं लखिने ललचाँहीँ ।। ३ सुकवि बनती मानि बानिं तजि. नेक हँसोंहीं ॥ ५७४ ॥ कुचगिरि चढ़ि अतिथकित व्है चली दीठि मुखंचाड । फिरन टरी परिये रही डरी चिबुक के गाड ॥ ४८४ ॥ | डरी चिबुक के गाड़े फेरि नहिँ बाहर आई । निकरत निकंरत फिसलि फि- सलि पुनिं तहाँ समाई ॥ सुकविं उपाय न और रह्यो जासौं सकि है फिरि ।। साँस झपट्टा लगें आई गिरि है पुनि कुचगिरि ॥ ५७५ ॥: :. ।

डारे ठोढ़ी गाड़ गहि नैन बटोही मारि । ...... चिलक चौंध में रूप ठग हाँसी फाँसी डारि ॥ ४८५ ॥ हाँसी फाँसी डारि छनक ही मैं गहि मारे। केनंकफूलंछ जनु कनकफूल दै । होस बिगारे । सुधि बुधिं लूटी अलक कूरे कोरा फटकारे । सुकबि किते अंध- मरे परे इन गाड़न डारे ॥ ५७६ ॥ , तो लखि मो मन जो लही सो गति कही न जाति ।। . ठोड़ी गाड़ गड्या तऊउड्यो है दिन राति ॥४६८॥ उड्यो रहे दिन राति गड्यों हू ठोड़ी गाड़न । बूंड्या अँसुअन नीर हु भुरसै.

  • कनकफूल = धतूरे का फूल औ सोने का फूल { { ") 7 . ! ...