पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२३

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भूमिका। | The fodern literay history of Hindustan-“on one occasion he got as much as five elephants and trventy-five thousands rupees for a single poem." इन दिनों किसी का भी जीवनचरित्र लिखना बहुत कठिन हो रहा है यहां तक कि इतने प्रसिद्ध विहारी कवि हो चुके और उनको समय भी बहुत अधिक नहीं हुआ है तो भी उनके जीवन में घोड़ा सा दृत्तान्त बिदित होता है। शिवसिंह सरोज, जिए• ग्रियरसनसाहब का रचित भारतभाषासाहित्य | **Modern Vernaculat: literature of Hindustan." और उन्हीं की लिखी बिहारी सतसया की भू: मिका के देखने से तथा निज परियम से जो कुछ हो सका सो बिहारी कवि का वृत्तान्त यह है । विहारी कबि माथुर चौबे थे, इनका गोत्र धौम्य था, वे सोती ।श्रोत्रिय) कहलाते थे। वे ऋग्वेदी

  • ब्राह्मण थे इनको आश्वलायन शाखा और कश्यप अत्रि सारण्य ये तीन प्रवर थीं कुलदेबी महाविद्या
  • मैनपुरी में मुचुकुन्दराय चौबे के पुत्र मथुराप्रसाद चौवे को जन्म सं० १८६८ में हुआ, इन्होंने

ज्योतिष बैद्यक और महाजनी विद्या का अध्ययन निज जन्मभूमि में ही किया । इनके घराने में चार सौ बरस से सराफा और सोना चांदी जवाहिर का काम होता आता था, थे भो उसी विद्या में निपुण भये। जब इनको अवस्था २५ वर्ष की हुई तब सन् १८५३ में थे लखनऊ के प्रसिद्ध सेठ साहुबिहारी । । लाल रघुवरदयाल के यहां सर्वाध्यक्ष मुनोम हुये। लखनऊ में इससे बड़ी कोई कोठी न थी । गदर होने से जब लखनऊ गारद हुआ तब इन्हें लखनऊ छोड़ फिर मैनपुरी जाना पड़ा। अनन्तर रानीगञ्ज में डाक के खजाञ्चौ का काम कुछ समय करके भागलपुर चले आये और अन्न का गोला तथा कपड़े ६ का व्यापार खोल । यहां इनको ज्यौतिष में प्रसिद्धि हुई तब यहां के प्रसिद्ध रईस महाशय हारकानाथ

  • घोष ने साक्षात् कार किया और अपने यहां अाश्रित रक्या । ये वृद्ध महाशय अभी तक हैं । इनके एक है

पुत्र और सात पौत्र हैं। सुना कि ये जगप्रसिद्ध विहारी कवि के गोतिया हैं । इस कारण मैं इनसे मिला और बिहारी के | विषय में जो बातें इनसे सुनी सो ये हैं:- ‘विहारी कवि धौम्य गोत्र के माथुर चौवे थे । सोती कहलाते थे । ये ऋग्वेदी ब्राह्मण थे, इनको अखिलायन शाखा और कश्यप अत्रि सारख ये तीन प्रवर थीं, कुल देवी महाविद्या थी । जयपुर महा: *

  • राज के यहां से इनको वसु गोविन्दपुरा ग्राम मिला था। वहां ही चिरकाल तक रहे, यह ग्राम *

| जयपुर राज्य में है । अभी तक विहारी के कुटुम्बी चौबे लोग वहां रहते हैं। विहारी कवि ने जो दोह जयसिंह के दर्वार में दिये वे ही सतसई में हैं पर सिवाय उनके और भी सैकड़ों दोहे उनके बनाये हैं। । उनके बनाये और ग्रन्थ भी हैं वे कदाचित् बसुआ गोविन्दपुरा में किसी चौबे के पास अंघवी महाराज । । जयपुर के पुस्तकाय के में हीं तो हों” ।