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बिहारी बिहार ।

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4444444444444444444 4 4141414 विहोरीविहार ।। | १४६ । *उर मानिक की उरबसी डटत घटत दृग दाग।' ::: झलकत वाहर कढ़ि मनो पियहिय को अनुराग ॥५०२॥ पियहियं को अनुराग मनौ वाहर संरसायो। सात्विकवल तें मनोरजोगुन । इंत चलि आयो । कुच के मनहुँ प्रताप भयो गाढ़ों सजि वानिक । सुकविः । * सेहिनी नवल तीय धारे उर मानिकः ।। ५.३॥ :: ::: ::: | कर उठाय पूँघट करत उसरति पटगुझरौट।... -:: | सुखमोटें लूटी ललन लखि लुलना की लोटः ॥५०३ ॥ | लखि ललना की लोट भई मति लोट पोट सी. । लखि रोमावलि रोम रोम जनु लगी चोट सी ॥ नाभी चाभी ऐौंठ चढ़ाई मनहूँ मदनजर । चरवस परवस परयो सुकवि तिय के उठयें कर ॥ ५६.४ ॥ ... लहलहाति तन तरुनई. लचि ल ल लुफि जाइ । | लगै लाँक लोयन भरी लोयन लेति लगाइ ॥ ५०४ ॥: । लोयन लेति लगाइ ललकि कै लाल सलोनी। लरझर ललित लुनाई ऐसी । भई न होनी ॥ लाल लाल की लर लरकांये लहकति छन छन । सुकवि लली । के यों ललिताई लहलहात तन ॥ ५.६५ ॥ ... ..... ... * :- लगी अनलगी सी ज़ कट करी खरी विधि छीन । ... ३ किये मनो वाही कसरि कुच नितंव अति पीन ॥ ५०५॥ कुच नितंब अति पीन किये कटिकसर निकारी । अति कामल के अधर कठिन हिय कीनी नारी ॥ गात गुराई जिती तिती कच स्यामता पगी । सु । कवि विधाता ठीक करी सव लगी अनलगी ॥ ५९६ ॥. .. ... ... • ४ हप्स कवि के ग्रंथ में हैं । गैः ओट = मंलोट ८ त्रिवनि ! :: बैत की भाति ।

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