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बिहारी बिहार ।

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=- =- बिहारविहार, *जंघ जुगल लोयन:निरे करे मनौ बिधि मैन । ' कैलिरुन दुखदैन ये केलि तरुन सुखदैन । ५०६॥ । केलितरुनसुखदैनहोत ग्रे चञ्चल जब जब । नैनन को थिर करत प्रेम • बरसावतातच तवइन काँबरनतसुकवि सबै थकिं गये चारिं जुग। वे मृग दृग से ये पुनि हैं गजसुण्ड जंघ जुगः ।।: ५६७ ॥ : ) : । रह्यो ढीठ ढाढ़स गहें ससिहर गयों ने सूर : | मुरयो नै मर्न मुरवनि चुभि चौ चूरन चपिचर ॥२७॥ में भी चूरनंचापि चूर 'आरसी' + आर लगाई। बाँध्यों बन्धन हार हराये * ॐ मानो कामदेवरुप बिधाता ने जड्युगल को निरलोयन’ कोरे लावण्य से ही बनाया है। ये * * केलितरुन' कदली तरुओं को दुख देने वाले हैं। क्योंकि कंदलौस्तंभ की शोभा को दबायें है) * और कैलि में तरुण पुरुषों को सुख देने वाले हैं। इस दोहे मे ‘लोयननिर’ प्रसाद को नष्ट करता है। * : नायक का मन बड़ी ढीठे हैं औ सूर हैं इंस लियें (ढाढ़स गर्दै रह्यौ) धैर्य को धारण किये रहा । (ससिहर गयों नडरपा नहीं। ' :: :: :: : : : * सुरवीन' का अर्थ कृष्णकविश्री हरिचरणदास कुछ नहीं लिखते । लहूलाल ने सुरवान का अर्थ पाँव * की कलाई लिखा है। परन्तु नथ में जड़ाऊ मोर बना रहता है उसे भी मुरवा कहते हैं (.राजपुतानी * मोरड़ा) अथवा मुर बन= मुंडने की बान, इसका भी मन” कसकन वर्णित है जैसे देश कबिंत । । समस्यापूर्त्तिप्रकाश में "भूलें नाहिँ भौंह वै कटौली खमदार खांसी कौरति नेसाई जिन कसे कै के मान की । हँसते मैं दौसौ सो न भूलत बतौसी दत्त भूलत न नैन सैन हैन दधि दान की ॥ अन्तरङ्ग सखाते कहत हरि.हौ की बात भूलो नहिं जात नारि मौरन जुमान की। भूलत ने गुञ्जरी की अजरी * गहत भुजा छबि मुसकान की ककी की सी है खान-कौ ॥ १ ॥:: छूटी लरिकाई आई सबै चतुराई अंग में अंग में निकाई कामदेव प्रगटान कौ। नैन में लुनाई सुधराई-सरसाई ताकी कोक की कला सी खासी । * मूरति वखान कीजोबन जबँाहिंर सोचम क्यो संकल देह नेह कौं लंगन हिंये माहिं 'हुलसान की । । * थोरै से दिनां ते भौंह को मरीरि लई बानि मुरि मुसुकान कीं ॥ ३ ॥ संस्कृत टौकी में तो पँवं का कोई भूषण कहा है जैसे मुरैवर्शिब्देनं चरणाभरण' विशेषः हौनजात प्रसिधः” । * ई चूड़ा चूडौः + अर = आस बन्ध= कचुकौ अरि के बन्धन। -:: :: : । |

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