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बिहारी बिहार ।

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बिहारीबिहार। . पुनः :::::::: | रङ्गभरे वह गोरे गोरे गाल गुलाबी । सुन्दर सुन्दर दन्त कुन्दकलिकादुति दावी ॥ गुलदुपहरिया अधर नैन नरगिसछवि पेखीं । सुकवि कुसुम करकमल चुनति नहिँ प्यारी देखी ? ॥ ६०६ ॥: :: :: ::: वाहि लखें लोयन लगे कौन जुवति की जोति। | जाके तन की छाँहढिग जोन्ह छाँह सी होति ॥ ५१८॥ - जेन्ह छाँह सी होति छाँहढिग जाके छन मैं। परे चाँदनी होत मलिनंदुतिं जाके तन मैं ॥ दरपन से भूषन हू अङ्ग नहिँ सोहत जाही। आँखिन वारो सकांचे हात परबस लाख वा ही ॥ ६१० ॥ . ....... . । कहा कुसुम कहा कौमुदी कितिक आरसी जोति ।.... . जाकी उज़राई लखें ऑखि ऊजरी होति ॥ ५१९ ॥ * ऑखि ऊजरी होति लखें: जाकी उजराई। मूंदे हु पै रसभरी रहति वाही छबि छाई ॥ धोये हू. नहिँ जात नैन सो ई, सोभा.रह । सुकवि आरसी कहा कौमुदी कहा कुसुम कह ॥६११ ॥ . *कहि लहि कौन, सकै दुरी सोनजुही मैं जाइ। ... * . तन की सहज सुबासना देती जो न बताई ॥ ५२०॥ | देती जो न बताइ द्वार हैं फैलि रही अति । कारे कारे अलिकुल की त्य रोकि रही गति ॥ सुकवि रङ्ग मैं रङ्ग मिल्यो सव सखी रही चहि । अङ्ग सुगन्ध । न होती तो लहि कौन.सकै कहि ॥ ६१२ ॥ .. :: ................। रहि न सक्यो कसः करि रह्यो बस करिलीन मार।:: . भेद दुिसार कियौ हियौतनदुति भेदै सारं ॥ ५२१ ॥ | यह दोहा कृष्णदत्त कवि कौ टीका के ग्रन्थ में नहीं है। दुसार= आरपार । सिार = लोहा।।