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बिहारी बिहार ।

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विहारीविहार । । तनदुति भेदे सार सरोवर अगि लगावै। वरती झर क तरुन करत जल झर बरसावे ।। जादू टोना मन्त्र जन्त्र को सार लिये गहि । आँख परे ही । धीर वीर नहिँ सुकबि सकै रहि ।। ६१३ ॥ कंचनतन धन बरन वर रह्यो रंग मिलि रंग । । जानी जाति सवास ही केसर लाई अंगं ।। ५२२ ॥ | केसर लाई अङ्ग चास ही स पहिचानी। रङ्ग रङ्ग मिलि गयो किहूँ विधि जात न जानी ।। चिनु काजै यह बानि परी कैसी धौं सखियन । केसर लावति सुकवि रोज तिय के कञ्चनतन ।। ६१४ ॥ . .

- - - - है कपुर मनिमय रही मिलि तनदति मुकतालि। छन छन खरी विचच्छनौ लखति कृाय तृन अलि * ॥२३॥ • लखति झुाय तृन अलि गरि पुनि पुनि कर माहीं । गहि न सकत से से जानते तच यह सो मनि नाहीं । एक एक सौ पूछि रही तऊ लखि न सकत * धनि । सुकवि रही मुकताहलमाला है कपूर मनि ॥ ६१५ ।।.. . बाल छबीली तियन में बैठी आप छिपाई ।

अरगट ही फानूस सी परगट होति लखाइ ॥ ५२४ ॥ * परगट होति लाइ धधकि हि छवि के ज्वाला।चहुँ ओर जनु फैल रही * किरनन की माला ।। दृगपतङ्ग परि रहे देखि के कान्ति रसीली । छिपे छि3 पायें नाहिं सुकवि वह वाल छबीली ॥ ६१६ ॥

करत मलिन आछी छवि हिं हरत जु सहज विकास । अंगराग अङ्गनि लगे ज्यों आरसी उसास ।। ५२५॥ * दर • * सर १ । अझ म त कार्यकता है या यिद ।। . 4 ४६ ६ इट रिस्त * { अरगट == = = =रांट)