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बिहारी बिहार ।

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| विहारविहार।. ज्य, आरसी उसासराग नहिँ लागत नीको । अतिसै फीको लगत सुतीको केसर टीको । वीरीः को नहिँ काज, अधर आपु. हि है सुन्दर । सुकवि अरुनई * छटाकि रही ज्यौं अरुनित रविकर ॥ ६१७ ॥ ::::: :.... पहिर न भूषन कनक के कहि आवतु इहिँ हेत। | दर्पन के से मोरचा देह दिखाई देत ॥ ५२६ ।। * देह दिखाई देत सहज ही अधिक रसीली ।रपटि परें दृग जहाँ नाहिँ फिरि सकै छवीली ॥ टेव परी का समुझत नहिँ ये हैं अंगदूषन । सुकबि तुही चलि मुकुर देखि तिय पहिर न भूषन ॥ ६१८॥ :: :-: | लीने हू साहस सहस कीने जतन हजार। लोइन *लोइनसिंधुतन पैरि न पावत पार ॥ ५२७॥ . पार न पावतः किहूँ जतन ये करत करें। छवि के तुङ्गतरङ्गभङ्ग अति ही झकझेरै ॥ पलकपाल परि जात सुकबि येह धीरज छीने । कुण्डलमकर भुजङ्गअलक और हु जिय लीने ॥ ६१६ ॥ :: :: :: :: :: ::-. दीठि न परत, समान दुति कनकं कंनक से गात ।.. भूषन कर करकस लगत परसि पिछाने जात ॥ ५२८॥ * परसि पिछाने ज़ात कनक नहिँ परत लखाये । रसमाती के अङ्ग आजु चसमा, को हुँ हराये ॥ केसरकैचुकिवन्ध बिलोकतं जानी नीठिन ।:सुबरन भूषन सुकविं * परत कोऊ विधि डीठ ने ॥६२० ॥:: . . :::::::::: अङ्ग अङ्ग नग जगमगति दीपसिख़ सी देह । । दिया बढ़ाये हू रहै बड़ी उजेरो गेह ॥ ५२९ ॥: : : * *लावण्य समुद्र तन में। * बढ़ाने का तात्पर्य बुताना है।प्रायः दिया.दुकान, कोठी आदिशब्दों के योग, 4 में बुताना औ वन्ध करना अर्थ होता है। यदि कहैं कि ‘दिया बुताओ'तो यह अशकुन समझा जाता है ।