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बिहारी बिहार ।

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१५८ बिहारीविहार । भाँर भगायेछ । झाँका लगि झूमत हू देखी कोउ परपञ्चन। सुकवि संधारन | माँहि माल कछु लखियत रच नः ।। ६२५ ॥:::: :: * त्यै त्यै प्यासे ई रहत ज्या ज्याँ पियंत अघाइ। सगुन सलोने रूप क ज न चखतुषाबुझाईः॥ ५३३ ॥ तृषा बुझाइ न नेक होत दूनी ही दिन दिन। मधुर रूप की बढ़त लालसा सौ गुन छिन छिन । नियरे खै खै ठीकठठाक जनु करत. तमासे । सुकबि पियत ज्याँ रूप अमी हैं त्यों त्यों प्यासेः ॥ ६२६ ॥ :....:::::::::::: | लिखन बैठि जाकी सबि हिँ गहि गहि गरब गरूर। भये न केते जगत के चतुर चितेरे कूर ॥ ५३४ ॥.... | चतुर चितेरे कूर भये चतुराई भूले । गयो सबै वह गरब रहे जासौं अतिः फूले । रङ्ग रूप कछु बनत नहीं बैठे है अनिमिष । सुकवि लेखनी हाथ रही कछुहू सकत न लिख ॥ ६२७ ॥ . ... .। चतुर चितेरे कूर आपु भये चित्र लिखे से। महामोहिनी मंत्र मारि मोहित निरखे से ॥ विद्या चहि गई सूखि गई पाई ही जो सिख । सुकबि बखानि न । सकै ताहिं सकि है कैसे लिखे ॥ ६२८ ॥ ... ... ... ... ... केसर के सिर क्यों सकै चंपक कितिक अनूप । गातरूप लखि जात दुरि + जातरूप को रूप ॥५३५॥ जातरूप को रूप जात लखि जासु लुनाई। कौन केतकी,तकी जासु ऐसी है ॐ चम्मा के समीप भौंर नहीं रहता यह प्रसिद्ध है जैसे; "चम्मा तो मैं तीनगुन रुप रङ्ग अरु बास । औगुन तो मैं एकही भौंर न ओवंत पास ॥”? ::दाख कैसे भौंरा झलकति जोति जीबन की खायजाते हैं। भौंरा जानहोतो रङ्ग चम्पा के ।” * सबी = सचित्र = तसबौर । ॐ सर= सरि = समता = सादृश्य । जातरूप = सना हु जासुः यस्य) : . .:. :: . . "