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बिहारी बिहार ।

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विहारीविहार ।। *गोरी गदकारी परे हँसत कपोलनि गाड़। कैसी लसति आँवारि यह सुनकिरवा की आड़ ॥ ५४३ ॥ सुनकिरवा की आड़ धरे मटकति है कैसी । खिलखिलाय कै हँसति कहति चातें पुनि तेसी ॥ सारी कबहुँ सँवारति ककरेजारँग बोरी । मुरि सुरि सुकवि विलोकि रही है ग्वारन गोरी ॥ ६३७ ॥ प्रफुलाहार हिये लसै सन की बेंदी भाल। राखति खेत खरी खरी खरे उरोजन बाल ॥ ५४४ ॥ खरे उरोजनि चाल लखति पुनि इत उत जोवति । आममोर श्रुति धरे झमकि जनु धीरज खोवति ॥ कुन्दकली को कै चुलाक धारे छवि अतुला । गुल्ला झुलनी रचे सुकवि सोहै छवि प्रफुला ॥ ६३८ ।। | चमक तमक हाँसी सिसक मसक झपट लपटानि ।। ये जिहि रति सो रति मुकति और मुकति अतिहानि ॥८४५॥ । और मुकति अतिहानि ताहि लें कै का कीजै । निराकार परब्रह्म बने हैं। * का सुख लीजै ।। स्वर्ग कहा जो देवतिया नहिँ करती झमझम । सार सुरति * हैं सुकवि और देखने के चमचम ।। ६३६ ॥ * * धर दोहा अनवरचन्द्रिका र दत्तकयि को टीका में नहीं है ॥ गदकारी == 'गदबे रह* न्न । किरदा के प्राइ : सुगन का प्रयय जुगनू के रङ्ग का टीका लगाये ॥ यह ‘लगायेयवा । । ि * पाहार माना है सो अनुचित : । ऐसा चाहे जिस शब्द का अध्याहार नहीं होता । '• ला ; निउन ६ कि प्रफुन्ना एक वृक्ष हैं मंस्कृत में इसे गरडुन श्री कुनक कहते हैं । प. रिए रिदद में प्रभु के स्थान में पहुना' पाठ रग्दा है और मुशा अर्थ कुमुदिनी मुमझा है । । उनके भाई थे। ६ : * मितरुमुदिनारा ग्रामोगा गरुम्मतिनकभाना । शतपयोधरेयं रति * दादा ४६ ६ "म य में के मन में मना करते तो और ग्रीक ना हो ।