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बिहारी बिहार ।

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बिहारविहार। *तनक झूठ निसवाली कौन बात परिजाई । तियमुख रतिआरंभ की नहिँ भूठिये मिठाइ ॥ ५४६ ॥ नहिँ झठिये मिठाई मरम जानै सो जानै । बसनगहन नीवी एकरनि सुख दूनो ठाने । दृग कैंदान पुनि सुकाब अधिक उमगावति है मन । टरनि मुरनि पाटीपकरनि सरसावत है तन ॥ ६४० ।। जो न जुक्ति पिय मिलन की धूर मुक्ति मुहँ दीन । ज्य लहिय सँग सजन तौ धरक नरक हू कीन ॥५४७॥ धरक नरक हू कौंन मिलै जो पै पिय प्यारो। पियहित मारो जारो नाग डसावहु कारो ॥ पीय बिना पुनि लगै पियूष हु जुलस जहर सो । सुकवि मुक्ति मैं अगि लगै नहिँ मिलै पीय जो ॥ ६४१ ॥ कुंजभवन तज भवन क चलिये नन्दकिसोर । फूलत कली गुलाब की चटकाहट चहुँ ओर ॥५४८॥ चटकाहट चहुँ ओर ललकि अलि गन मँडरान । कोकिल कलरव करत तान पञ्चम की ताने । झमक अम्बाबौर छजी केसर की सजधज । सुकवि न जैये कहुँ बसन्त इहिँ कुंज भवन तज ॥ ६४२ ॥ + हेरि हिंडोरे गगन हूँ परी परी सी टूटि । धरी धाय पिय बीच ही करी खरी रस लूटि.॥ ५४९ ।। । ॐ यह दोहा हरिप्रसाद के ग्रन्थ में नहीं है। क्या तनिक झूठ हो तो भी निस्वाद ही होती है ? क्या जाने क्या बात पड़ जाय ! रति के आरम्भ में तिय की झूठी ‘नाहीं में हीं मिठास रहता है ।। ( इस दोहे का पूर्वाई अच्छा नहीं है ) यह दोहा कृष्णदत्त कबि के ग्रन्थ में भी नहीं है ॥ * धरक = खोकार ( हरिप्रकाश ) । यदि की न अलग अलग मानें और यह अर्थ करें कि नरक की भी धड़क | (डर) नहीं है तो और अच्छा हो । यह दोहा हरिप्रकाश के ग्रन्थ में नहीं है । ६ आम के मौर।। | + देख हिंडोलेरूपी अाकाश से ।।