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बिहारी बिहार ।

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विहारविहार ।। करी खरी रस लुटि वड़े पुन्यन जनु पाई । चकी जकी सी रङ्गभरा गहि कण्ठ लगाई ॥ टुटी माल अरु बिधुरि गये कच हू तन गरे । चुयो परत सुख आज सुकवि तिय हेरि हिंडोरे ॥ ६४३ । ।

  • बरजे दूनी है चढ़ ना सकुचै न सकाइ ।

टूटनि कटि दुमची भचक लचक लचक बचि जाइ ॥५५०।। | लचकि लचकि वचि जाय लहकि लहँगा लहरावति । कटि किङ्किनि झमकाइ उचकि अँचरा फहरावति ॥ कृमि झमक झवियान झुमावति होत न उनी । सुकवि डोर नहिँ तजत होत है चरज दूनी ॥ ६४४ ॥ लै चुभकी चलि जाति जित जित जलकेलि अधीर ।। । कीजत केसरनीर से तित तित के सर नीर ॥ ५५१ ॥ |तित तित के सर नीर होत केसररेंगधारा। बुड़े हु पै नहिँ छिपति अङ्ग इमि जोति अपार ॥ वलि जाऊँ हरे चलो छिपे से कोऊ जुगत के । सुकवि नयन निज सफल करहु राधिका दरस लै ॥ ६४५ ॥ विहँसति सकुचति सी हिये कुचआँचरविच बाँह । । भांजे पट घर को चली न्हाय सरोवर महि ।। ५५२ ॥ न्हाय सरोवर माँह चली वृंदन टपकावति । तिरछै लखि लखि स्याम अ। धिक अन पुलकावति ॥ सारी चिपकाने कछु छुड़ावति रुकि रुकि विलसति । * सुकवि फुरुहरी लेइ फिरति तक तक के विहंसति ॥ ६४६ ।। न्हाय सरोवर माँह समेत लट लपटानी । केसर सेंदुर चुवत चरन । रुकि के रपटानीं । चुचुक सारी परसि रहे तिहिं निहुरि लखति सी । सुकाव * स्याम के निरखि निरखि विहँसति सकुचति सी ।। ६४७ ।। • ६ नन्दन टीका ३ नई । केयन घर मे ( तुकान्त मिलाया है)।


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