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बिहारी बिहार ।

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विहारीबिहार ।। *मुख पखारि मुड़हर भिजे सीस सजल कर छाइ।. मौरि उँचै बॅटेनि नै नारि सरोवर न्हाइ ।। ५५३ ॥ | न्हाइ आँचरन आड़े किये कुच दोऊ पखारति । चिरुआ लै लै नीर नैन । पै छौंटन डारति ॥ नाभि रोमावलि कटि नितम्ब मलि अधिक लहति सुख।। सुकबि हिँ लखि मुसकाति बसन तै पछि रही सुख ॥ ६४८ ॥ छिरके नाह नबोढ़ग करपिचकीजलजोर । । | रोचनसँग लाली भई बिय तियलोचनकोर ॥ ५५४ ॥ | बिय तियलोचनकोर भई जल छींटन लाली । कछु सँदुर बहि आनि अरयौ तेहिँ निकट गुलानी ॥ पियअनुरागीनैन भये प्रतिबिम्बित थिरके । सुकवि । और हू प्यास बढ़ी दृग हरिजलछिरके ॥ ६४६ ॥ | चलनललितश्रमसेदकनकलित अरुनमुखऐन । | बनबिहारथाकी तरुनि खरे थकाये नैन । ५५५ ॥ खरे थकाये नैन पात लै बात डुलावति । हाँफति सी पुनि बैठि मंच अँग अँग थरकावति ॥ कर कपोल दै रहति उधारति ठमक नैन पल । भये सकल सुखऐन बखानत सुकबि हु चञ्चल ॥ ६५० ॥ बढ़त निकसि कुचकोररुचि कढ़त गौर भूजमूल। मन लुट गौ लोटन चढ़त चॅटत ऊँचे फूल ॥ ५५६ ॥ इँटत ऊँचे फूल उँचे सरकत सिरसारी । दरसत अलक कपोल झूमका विचकन चारी ॥ त्रिवली नाभि रोमावलि कछु झलकन आनन्दमढ़। सुकवि और आनन्द कहा है है यास बढ़ः ॥ ६५१ ॥ ॐ मौरिउचें घूटेमि नै =जुड़ा ऊंचा कर घुटनुओं से झुक करं ॥ .... , . , | ** यह दोहा हरिप्रकाश के ग्रन्थ में नहीं है । लोट = चिबलि ॥ ... = = = == == =

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