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बिहारी बिहार ।

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विहारविहार। अपने कर गुहि आप हठि हिय पहिराई लाल।। मोल सिरी और चढ़ी मौलसिरी* की माल ॥ ५६७ ।। | मौलसिरी की माल आजु और छवि धारति । निरखत नैनन हरति हहा हियरो गहि गारति ॥ कुच केसर मुखवासमिलित सोहति सौरभ वर । सुकवि लखहु यह माल लाल गॅथी अपने कर ॥ ६५२ ॥ - 1जु ज्य उझक झाँपति बदन कति विहँसि सतराइ । तु त्याँ गुलाल मुठी झुठी झझकावतु प्यौ जाइ ॥५५८।। झझकावत प्यो जाइ झुठी सूठी छन छन मैं । सकुचत चिहँकत जातनारि सिकुरी निज तन में ॥ सुकवि सुजान उछाह अधिक उर बाढ़त त्यों त्यों । उझकत हाहाखात तिया झाँपत मुख ज्याँ ज्यों ॥ ६५.३ ॥ पीठि दिये ही नैक मुरि कर चूंघटपट टारि । । भरि गुलाल की मुठि सो गई मुठि सी मारिः ॥ ५५९ ॥ गई माठि सी मारि झमकि नूपुर झमकावति । हँसि कछु तिरछी लखति * कृमि कुलनियाँ झमावति ॥ केसकुसुम बरसाई सुकवि मन जात लिये ही। । दुरत दुरत दुरिगई दुरिन पीट दिये ही ॥ ६५.४ ।। * गई मटि सी मारि + झूठ ही मट छवीली। हिय कसकति हैं अज हुँ बालु * ० *मिरी देऊल ! : यह धनवर चन्द्रिका में नहीं है । इम में जुज्यो’ र ‘तुत्य' शान हैं : द ठीक होता है । च झापति मुग्द अझकि झुकति बिमि मराः । त्व । ' र मुटः । *:*काय बिज्ञा' से ' या' । मान गडनिया का कुग्न मनन । { ; । कदाचित् 'शुरू ; B कई नि स प रु दु । मान’ : नियम पर बिहारी जी ने ।

  • : * * : पटना ३ । । कालान्तर में 'हु 'लिमा गया है । घर या ।
: ॐ ॐ =न में इस प्रा९३ * : भारःम का प्रयोग करना में 2 मारना क । । १ : * उतने में” १ : कि । ४ झडत झन्झट दात व प्रकार :