पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१६७
बिहारी बिहार ।

________________

विहारीविहार। | फगुआ देत वनै न चित्त हरि लियो रसीली । गजवे गुजारति गरव गुरेरनि साँ गरवीली ॥ मुरि मुरि मन मुसुकाति मोरि मुख माँती मटकति । सुकचि हटति तिय हटकि हटाके ज्यों ज्य पट झकति ।। ६५९ ॥ | रस भिजये दोऊ दुहनि तऊ टिक रहे टरै न । छवि स छिरकत प्रेमरँग भरि पिचकारी नैन । ५६४ ॥ भरि पिचकारी नैन औझका झाँकि चलावत । धोखा दे दै झमक कटाछन झर वरसावत । लखि लखि जुगुलकिसोर सुकवि वारत है सरवस । रुकत न झीने चीर वीर भींगे दोऊ रस ॥ ६६० ॥ | छकि रसालसौरभसने मधुरमाधुरी गंध ।। ठौर ठौर झरत झिपत भरझर मधुअंध ।। ५६५ । * : भरझर मधुसन्ध र वौरन ही वैठत । दौर दौर कै ठौर टौर गुञ्जत मद ऐंठत ।। भौंरीसँग भौंरीन विचि थिर होत ठठकि थकि । विन्दुमरन्द । अनन्दकन्द ले रहे सुकवि छकि ॥ ६६१ ।। | दिस दिस कुसुमित देखिये उपबन विपिन समाज । मनहुँ वियोगिनि कौं कियौ सरपंजर रितुराज ॥ ५६६ ॥ सरपंजर रितुराज कियो चहु साजि समरसर । धनख विपुलपलास केवरा । मार भयङ्कर ॥ सुकवि लतर के पास अहँ लटकाये जित तित। धधकाई पुनि गि गुलावन दिास दिास कुसुमित ॥ ६६२ ।।

  • फिरि घर क नृतन पथिक चले चकितचित भागि ।

फुल्यौ देखि पलासवन समुहँ सँमुझि देवागि ॥ ५६७ ॥ ३ समुहें सैमुझि दवागि धधकती अति घबराये । धूमजाल से देखि तमालन • Y: रिम्मद ३ इद भै है।