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बिहारी बिहार ।

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| विहारविहार।। लगति सुभग सीतल किरन निसि दिन सुख अवगाहि । माह ससी भ्रम, सूर त्यों रहति चकोरी चाहि ॥५८४ ॥ | रहति चर्कारी चाहि सूर क ससधर मानी । पुनि लखि जनु निकलंक मन हिँ मन जात सकानी ।।कबहुँक चाहात चपल चंचु चलिवे नभ संग सी । कबहुँ सुकवि पुनि फिरति भ्रमति अति लगति सुभग सी ॥ ६८३ ॥ रहि न सके सब जगत में सिसिर सीत के त्रास । | गरमी भजि *गढ़वै भई तियकुच अचल मवास ।।५८५॥ | तियकुच अचल मवास पाई गरसी जनु छाई। जाहि लखत ही पीय दीड दोऊ गरमाई ॥ + नाह विना विरहागिन हूँ अँग अङ्ग रहत गहि । सरस । सुकवि सँगपर सके अब यह ओट रहि ॥ ६८४ ॥ रनितङ्गघण्टावली झरत दानमधुनीर ।। मन्द मन्द आवतु चल्यो कुञ्जर कुञ्ज समीर ॥५८६॥ कुञ्जर कुसमीर मन्दगति झुमत आवत । द्रुमवल्लीन कॅपाय पसँगकुल सोर करावत ॥ कुसुम परागन रँग्यो लसत अति सभा सारनि । सुकवि | सहत सी मदन महावत अंकुस मारनि ॥ ६८५ ।। स्क्यो सॉकरे कुञ्जमग करतु झाँझ झुकरात । मन्द मन्द मारुत तुरंग वंदन आवत जात ।। ५८७ ।। * वृंदन श्रावत जात भृङ्ग घुघुरू झनकारन । पातनधुनि के व्याज मनहूँ * मधु हिनकारत ॥ फनसरन्द गिराई अड़त से अतिनिसाँक रे । सुकवि भने परागनगर उड़ावत रुक्यो सोकरे ।। ६८६ ।।

  • ई - में रहने वालो । मयाम -थान ! प्रतिदिदी को दो बी अग्नि होकर मट्टि * * * । र मरम नाय का मुद को तो फिर तन को दृर प्रारहवं! ४ ।। * • ६६१९:: रिमा * द में २ ।।