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बिहारी बिहार ।

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विहारविहार।' | १७५ *न ये बिसासये अतिनए दुरजन दुलहसुभाव । ऑटे पर प्राननि हरत काँटे लौं लगि पावे ।। ५९२ ॥ काँट ले लगि पाय प्रान संसय में नाखें । दखित सूधे नऊ कूरता अति4 से राखें । आपु जाँहि तो जाहिँ रइत नहिँ विना दुख दिये । सुकवि कहै। काँटे ल हैं वले न ये विससिय ॥ ६६१ ॥ जेती संपति कृपन के तेती तू मत जोर ।। बढ़त जात ज्या ज्यों उरज त्यौं त्यों होत कठोर ॥ ५९३ ।। त्या त्यों होत कठोर चीन कंचुकि हैं फारत । आँचर नोक गड़ाइ हार की गुहनि विगारत ॥ सुकवि सहायक संग करेरी ठानत तेती । अन्त मलिन है। दरकि जाति तजि सोभा जेती ॥ ६९२ ॥ नीच हिये हुलसे रहें गहें गेंद के पोत । . | ज्या ज्यों माथे सारिये त्यौं त्यो ऊँचे होत ॥ ५९४ ।। त्यो त्यों ऊँचे होत नम्रता नेकु न धारें। पुनि पुनि पट जाँय तऊ गैरत न गुजारें ।। चोट चूकते करत गिरत पुनि गरदा कीचहिं । सुकवि समुझि । के गेंद और तिमि गहिये नीच हिँ ॥ ६६३ ॥ कोरि जतन कोऊ करे परै न प्रकृति हिँ बीच । नलबल जल ऊँचे चढे अन्त नीच को नीच ॥ ५९५ ।।। अन्त नीच का नीच होइ नीचे ही हरकत । ऊँचो सुभ थल लहे त उत कर न सरकत ।। कल चल कीने सुकचि चाल तिहिं फिरे न तनको । यातें के रवन अन्न रङ्ग काज नहि केटि जतन केा ।। ६६.४ ।।। | * ; ; ;रिप्रसाद * य में न” । १ः चीन का कपड़ा - ३ नि पोत (इनार) । । १३ ३ : 'काम * * * * { उतन) नांदर्भिय *तोः प्रतिं नीयमानः । " ! * * * न अनि मद्ध : रं गान 'अगिया सो ६ मम गई चीन" ।।