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बिहारी बिहार ।

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बिहारीबिहार । . बुलवाई वानै ॥ भस्मासुर अदिक की किती कहानी देखो। सुकवि बिलोकि विचार करै को अरे परेखौ ॥ ७१७॥ | *बुरो बुराई जो तजै तो मन खरो सकात । . ज्यों निकलंक मयंक लखि गनै लोग उतपात ॥६१६ ॥ | गर्ने लोग उतपात उदित बुधं कौं जो देखें । वानि अस्त की तजी सुक्र * जे पुनि पुनि लेखे ॥ दिस दिस जाहें कनकवरन दिन घनअरुनाई। सुकवि । होत असगुन जो छाँडै बुरो बुराई ॥ ७१८ ॥ | पुनः ।। | गर्ने लोग उतपात होत त्यों हिय सक मेरे । मृगमदर्वेदा भाल आज नहिँ सहित तेरे ॥ कुटिल कटाछ हु देखि परत नहिँ अधर ललाई। सुकबि होइहै। कहा तजत है बुरो बुराई ॥ ७१६ ॥ भाँवरि अनभाँवर भरो करो करि बकवाद ।। अपनी अपनी भाँति को छुटै न सहज सवादः ॥६१७॥ छुटै न सहज सवाद आजु परतछ ही देख्यो । साखी हैं सब सखी नाहिँ कछु ससै लेख्यो ॥ सुकवि मोहि तो सुमिरि सुमिरि आवत तन तावरि ।। निघरघटो यह लखा लेत इन दृग दोउ भावरि ॥ ७२० ॥ जाके एकौ एक हैं जग व्यसाय न कोई। सो निदाघ फूलै फलै आक डहडहो होय ।। ६१८॥ ने अति बढ़ने पर [पार ] पाढ़ अर्थात् मर्यादा रक्खी है !! राखियो = राख्यो ॥ ( प्रसाद गुण नहीं है । * भाषाच्युत दोष है । आनन्दजनक न होने से इसके काव्य होने में भी संदेह है ) ॐ यह दोहा कृष्णदत्त कवि के ग्रन्थ में नहीं है। यह दोहा कंणदत्त की टौका में नहीं है। * "भावरि अनभावरि = हेराफेरी । * जगत में कोई एक पुरुष भी जिनमें से एक का भी व्यवसाय : में नहीं करता सो अाक (शेषस्पष्ट) ॥