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बिहारी बिहार ।

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विहार 主是主土土土土土生土,土生土生土土土土土土土土土土土土土土土土土土土土土土土土主 विहारविहार ।। आक डहडहो होइ हाय याक को चाहै। सौरभ को नहिं लेस नैन लागें । अति दाहे । पात हु में नहिँ सुकवि अहै कोमलता नेकौ । एक हु के हित | नाहिँ अङ्ग हैं जाके एक ।। ७२१ ॥ को कहि सके बडेनि स लखें वडी* यौ भल। दीने दुई गुलाब को इन डारनि वे फूल ॥ ६१९ ॥ इन डारनि वे फूल देई अलवृन्द लुभायो । कोकिल कारी करी कुहूकान * जग तरसायो । अँग अंग कोमल ठानि तीयहिय कियो उपल से । सुकवि पण्डित हिँ अधन कियो विधि भापि सके को ॥ २२ ॥ | सीतलता रु सुगंध की घटै न महिमामूर ।। पीनस वारे जो तज्यो सोरा जानि कपूर ।। ६२० ।। सोरा जानि कपूर तर्ज सो मृढ कहावै । गुन पहिचाने जोई सोई पुनि । 4 चतरन भावे || नरपान हूँ चन्दन सँग जाको धारै हीतल । सुकवि सीस सर धेरै ताहि लखि सुरभि सीतल ॥ ७२३ ॥ । चित ६ चित्त चकोर ज्यों तीजे भजै न भूख । चिनगी चुर्गे अँगार की पियै कि चन्द मयूख ।। ६२१ ॥ चन्द मयूख हु ज्वाला सी ओहिं हाय दही है। तुव वियोग की घोर अगिन के घेटि रही है। तुअसंयोग पियूष फीर धाँ कब पी है नित। तीजी होइन । दस सुकवि पिये इत दीजे चित ॥ ७२४ ॥ । पिय कि चन्दमयूख चुग के अागि प्रीति स । दोउन में ये भाव रहत हैं । । उ ऋ १ ते ६ इना होगा । * पोनस रोग भु भामा को गन्धग्रागिक्ति जाती रहती है।