पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२७

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| भूमिका । इस समय छत्रसाल की सभा में निवाज, रतनेस पुरुषोत्तम, विजयाभिनन्दन, लाल, इरिक्स, प ।

  • ञ्चम, इत्यादि बड़े नामी ३ कवि उपस्थित थे ! उन सबों के साथ महाराज ने स्वयं बिहारी के ग्रन्थ को

। देखा और सभा में अत्यन्त प्रशंसा कर बहुत सम्मान किया तथा पांच गांव पारितोषिक दिये। इससे | बिहारी कबि ने अति प्रसन्न हो कहा कि मैं भाग्यानुसार थोड़ा बहुत पारितोषिक तो महाराज जय- सिंह के यहां से पा चुका हूँ परन्तु उस सभा में मेरी कबिता की ऊँच कुछ भी नहीं हुई थी, इस कारण । मैं केवल इतने हीं के लिये भारतवर्ष के भूषणस्वरूप कबिकल्पवृक्ष इस राजार में आया था सो मेरो कविता को इस सभा से प्रशंसा हुई इससे बढ़ के मैं कुछ नहीं चाहता । यह सुनं राजा छत्रसाल बहुत ही प्रसन्न हुए और विविध वस्त्रालङ्कार और द्रव्य देकर विदा किया है ।। क्रमश: यह वृत्तान्त महाराज जयसिंह की विदित हुअा कि बिहारी ने जमीदारी लौटा दी, यह सुन ॐ जयसिंह और भी प्रसन्न हुए और बिहारी को बुलवाया और प्रशंसा कर बसुआ गोविन्दपुरा नामक दो बड़ ग्राम और दिये। ( यहां अभी तक बिहारो के गोत्रज लोग रहते हैं ) इतने समय के अनन्तर वि . से हारी ने अपने ग्रंथ में इति लगाई है ॥ अनन्तर विहारीकबि भ्रमण करते हुए श्रीमथुरा में आये दैवात् ।

  • * एसा भी लोग कहते हैं कि-छत्रसाल के यहां एक प्राणनाथ कबि थे और देखा देखी उनने भौ ।

एक ससई, बनाई, और हमारी सत्सई उत्तम है इस बात का कोलाहल किया तब बिहारी नै अति - दुःखित हो कहा कि श्रीयुगलकिशोर के मन्दिर में प्रभु के समीप दोनों अन्य धर दिये जांय प्रभु जिसे ॐ अंगोकार करें वही ग्रन्थ सब से उत्तम समझा जाय। तब वैसा ही किया गया। रात को दोनों ग्रंथ भगवान के समीप रख शयन करा दिया गया प्रातःकाल देखा गया कि बिहारी के ग्रंथ पर भौयुगल किशोर के हस्ताक्षर बने हुए हैं। इस समय विहारी ने यह दोहा बनाया कि “नित प्रति ऐकत हो में रहत बैस दरन मन एक । चहियत जुगलकिसोर लखि लोचन जुगल अनेक ॥” $ इस अन्तराल में और भी कई एक दोहे बनाकर बिहारी जी ने इसी थन्थ में डाले हैं प्रायः वे ही किसी टीकाकार को मिले हैं किसी को नहीं। छत्रसाल संवत् १७१५ में धोलपूर मैं दाराशि- में कोह और औरंगजेब के युद्ध में मारे गये । इसके कुछ दिन के अनन्तर जयसिंह ने बिहारी को गांव दिये । और संवत् १९१३ में जयसिंह का परलोक हुआ { जयपुर राजपूत स्कूल के हैडमासूर चारण रामनाथ-

  • रद् अपने इतिहास राजस्थान में जयसिंह का परलोक १७२४ में कहते हैं ) बिहारी ने अपने ग्रंथ की

इति संवत् १७९८ चैत बदौ छठ को लगाई क्यों कि उस दिन पीछे इस ग्रंथ में और दोहा बनाना अना। वश्यक समझा ऐसा अनुमान में आता है ॥ दो, ७०८ में इस छठ को सोमबार कहा है पर कितने ही गणक कहते हैं कि उस रोज सोमवार नहीं आता है ॥ ग्रेयर्सन् साहब अपनो छपाई सतसई की । भूमिका में तो सब से विलक्षण ही लिखते हैं ॥ उनका लेख यह है ॥-- | Introduction P.5, ६A doha. purporting to be by him States that he completed the