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बिहारी बिहार ।

43.*444444444444444444444444 विहारविहार।

  • सरस कुसुम मॅड़रात अलि न झाकि झपट लपटात ।

दरसत अति सुकुमार तन परसत मन न पत्यात ॥ ६३३ ॥ | परसत मन न पत्यात देत परदच्छिन चहुँदिस । मधुरे वचन सुनाइ आइ दिग करत किते मिस ॥ तजि दूर हु नहिं जात मोहि गयो मधुर गन्ध पर। सुकवि सुभगता देखि भूलि गयो मधुकर वनसर ॥ ७३७ ॥ -पट पाँखें भख कॉकरे सफर परेई सँग । सुखी परेवा जगत मैं एकै तु ही विहङ्ग ॥ ६३४ ।। | तुही विहँग है सुखी कळू परवाह न राखत । गिरि वन कुञ्जन रमत विमल झरनाजल चाखत ॥ साँचे तेरे पुन्य को ऊ कळू हू किन भाखे । सुकवि क्यों न तु नचे सदा ओढे पट पाँखे ॥ ७३८ ।। t३: एकै तु ही विहङ्क तिया सँग दिस दिंस डोलत । रमत खात तियसङ्ग वैठि । मधुरे सुर बोलत ॥ सब जग तेरो ई राज ताहि नाही कळु खटपट । सुकवि चौंच चपलाइ वैठि उड़ि तिय सँग चटपट ।। ७३६ ॥ - -- -- ज। " दिन दस आदर पाइ कै करि लै आप बखान ।। जो लगि काग सराधपछ तौ लगि तो समान ।। ६३५॥ तो लगि तो समान अहे पितरनपच ज ल । फुल्यो फुल्यो फैलि काग- । लि पावत ती ले ॥ कानी आँखिन ताकि करत पुनि पाँखन फरफर ।। । सुकवि यही मन राखि अहे तुअ दिन इस अादर ॥ ७४० ।।

  • * ४ र ४रिप्रसाद के पद में नहीं है। संस्कृत टीका में 'मिरिम कुसुम पाट ३' ।

•• ६४ ६१ वरदक्षिा में नए। है ६ एरेया • पारावते ।