पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१८९
बिहारी बिहार ।

2114444444444444444444444444********** विहारविहार । | १८६

  • अज तरयो नाहीं रह्यो सुति सेवत इक अङ्ग ।

नाकबास बेसर लह्यो बसि मुक्तनि के संग ।। ६४० ।। । सग सुभग जो होई नासु फल कहते न आवे । केवल पोथी वेद काज नहिँ कळू बनावे ।। जो सज्जनसँग रह्या तासु सुभ कहा भयो ना । वकवक-

  • वारी सुकवि काऊ पुनि अज्ञों तरयो ना ॥ ७४५ ॥

मुक्तन के संग चेसर कैसा सुभ फल पायो । अधरामृत काँ पीइ चिबुक- चुम्वन सरसायो । सॉससमीरन सुरिभत है सुख कोन लह्या ना । सुकवि झूल ही रह्यो तरयाना अर्जी तरया ना ॥ ७४६ ॥ जनम जलधि पानिप अमल भी जग अबु अपार ।। रहे गुनी हूँ गर पग्यो भलो न मुकताहार ॥ ६४१ ॥ भला न मुक्ताहार गुनी ह्व गरे परत है । झूलत झटका खाइ तऊ पुनि नाहिं टरत हो । सरकाय हू हाय परत पीछे तिहिं तजत न । चहिय नाहिँ परवाह सुकवि जा भया गुनीजन ॥ ७४७ ॥ गई न एका गुन गरव हँस सकल संसार ।। कुचउचपदलालच रहे गरे परे हू हार ॥ ६४२ ॥ गर परे हार चहत कुच ऊपर ठहरन । लरकि जात पुनि लगत झपटि चर की फहरन ।। इन उत फिलला परत चीच अन्तर नहिँ नको । सुकवि फूल ही रह्यो हार गति गहे न एका ।। ७४८ ।। मंइ चढ़ाये नउ रहे परे पटि कचभार । ह्या गरे परि राखिये तऊ हिये पर हार ।। ६४३ ॥ ६ ६ १ १रमाट ३ ६ ३ ६ । : यर एंड रिप्रकाश में न ।।