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बिहारी बिहार ।

| विहारीविहार।। १९.५ ।

  • लोपे कोपे इन्द्र ल रोपे प्रलै अकाल ।

| गिरिधारी राखे सर्व गोगोपीगोपाल ॥ ६५७ ॥ गोगोपीगोपाल दीन रट जनै पुकारी । तिहिँ छन राखे सवै नाथ गिरिधर । गिरिधारी ॥ सुकवि पुकारत आरत है अतिसै चित चोपे । सुनत नाहिँ कछु। हा कहा तुमरे गुन लोपे ॥ ७७१ ॥ | हम हारी के के हहा पायनपारयो प्योरु ।। लेहु कहा अज हूँ किये तेहतरेरे त्यौरु ॥ ६५८ ॥ तेहतररे त्यो नाहिं अब हूँ नरमाने। पुनि पछितेहो कलपि कलपि रहियो जिय जाने । मति झूठे अनखाहु पीय हैं आसाकारी । मानत नाहिँन हाय सुकाव कहि कहि हम हारी ॥ ७७२ ॥ 1243

अनी बड़ी उमड़ी लखें असिवाहक भट भूप ।

मङ्गल करि मान्य हिये भो मुख मङ्गलरूप ॥ ६५९ ।। भी मुख मङ्गलरूप कुसुम्भी रङ्ग रमायो । नैनन ६ जनु अति उछाह को । रस सरसायो । असि करमर के उठी आपु ही परतले पड़ी । फरक रही दोउ भुजा सुकवि लखि के अनी बड़ी ॥ ७७३ ॥ 44444141414141414141 4- नाहगरज नाहरगरज वचन सुनायो टेरि । फसी फौज में वन्दविच हँसी सबनि मुख हेरि ॥ ६६० ।। होती सवनमुख हेरि कान्ह के बल हिय सानी। करि न सकत कोउ कछु। ० ४ ४ ४रिसद के पद में न ६ । न• 'इम हा ॐ ॐ गरी रु पयन यी पायी' । ४ ५' एक शमान ¥ नहाल नायक अयं करते हैं भी समझने वाले मुमझ में । । ३ ३