बिहारीबिहार। - यह निहचै जिय जानी ॥ लगत तमासे सरिसः रिपुन की घोर तरजना । ढाढ़स जिय अति देत सुकबि सुठि नाहगरजना ॥ ७७४ ॥ .... ।
- डिगत पानि डिगलात गिरि लखि सब ब्रज बेहाल ।।
कम्प किसोरी दरस के खरे लजाने लाल ।। ६६१ ॥ | खरे लजाने लाल रोमाञ्चित देह सुहायो । दोऊ कपोलन सेदविन्दु को जाल हु छायो । हो हो, करि कर उचै गोप हू ठाढ़ भये ढिग । सुकबि कम्प सौं पानि डिगें गिरिराजे गयो डिग ॥ ७७५ ॥
- प्रयलकरन बरषन लगे जुरि जलधर इक साथ ।::
- सुरपतिगर्व हरयो हरषि गिरिधर गिरि धरि हाथ ॥६६॥ .
| गिरिधर गिरि धरि हाथकँगुरिया सब दुख मेट्यो । तासु तरे गोगोप गोपिकनवृन्द समेट्यो ॥ सूख गई जलधार कहाँ ध परि गिरिवर पर । सुकबि भये सब व्यर्थ मधे जो जुरे प्रलय कर ॥ ७७६ ॥. + य दल काढे बलख तें हैं जयसाई भंवाल । . उदर अंघासुर के परे ज्यों हरि गाय गुवाल ॥ ६६३ । । ज्य हरि गाय गुवाल अघासुरघात बचाये । जरासन्ध के कैदी नृपं ज्य पुनि बहराये ॥ भौमगहे नृपकन्यागन कीने सुखवाड़े । सुकाब भूप जयसाह चलख नैं यो दल काढे ७७७ ॥.. मोहनमूरति स्याम की अतिः अद्भुत शति जोइ । । । : बसत सु चितअंतर तऊ प्रतिबिम्बित जग होई ॥६६४॥ से यह दोहा हरिप्रसाद के ग्रन्थ में नहीं है। मैं यह, दोहा हरिप्रसाद के ग्रन्थ में नहीं है।
- ; प्रकृयं के करने वाले 1- ४: यह दोहा हरिप्रसाद,के-ग्रन्थ में नहीं है । जयसाह की प्रशंसा के
- सब दोहे अंन्त में हैं पर इसे यहा आजमशाह ने क्या जाने क्यों रखवाया ॥ . . .. . ' ।
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