विहारविहार ।। १६.६
- पतवारी माला पकरि और न कछु उपाव । ।
तरि संसारपयोध क हरिनार्दै करि नावे ।। ६७२ ॥ हरिनार्वे करि नाव धारि डाँडा जम नेमा । पुनि अनुकूल वयार पाइ निज निर्मल प्रेमा ।। धीरज को पुनि तान गहकि कै गाढ़ा पाला । सुकवि सम्हा- रत हेरफेर पतवारी माला ॥ ७८७ ॥ | यह विरियाँ नहिँ और की 1 किरिया उहिँ सोधि । पहननाव चढ़ाय जिन कीनो पार पयोधि । ६७३ ॥ कीनो पार पयोधि कोरि कपिंसंग तिहिँ नावै । तारि दई है सिला अहल्या से परसत पावै ॥ ताही क भजि सुकवि तोहि तेरी है किरिया । दुर्लभ नरतनु
- पाइ भुलि मत तू यह विरिया ॥ ७८६ ॥
5.4444444444444444444444444444444444444444444444 G दृरि भजत प्रभु पीठि ६ गुन बिस्तारन काल। | प्रगटत निर्गुन निकट रहि चङ्गङ्ग भूपाल ॥ ६७४ ।। चङ्गरङ्ग भूपाल जोर गुन ही के पैयत । निजगुन ताक दिये दुरता तासु । वैदेयत ॥ तिहिं गुन अपनी घाँ ऐंचे दूरता जात सभु । ढीला दीने सुकवि सुन लें दूरि भजत प्रभु ॥ ७८६ ॥ +लटु ल प्रभु कर गहे निगुती गुनलपटाई। वहे गुनी कर तें छुटे निगुनी ये हैं जाई ॥ ६७५ ॥ • दर हा फ़दत्त कयि के अन्य में नहीं है। १ किरिया = कराधार । दे: ३ : भारी शुरू, राजपुताने में मभिः ॥ ॐ सत्य रज तम के विस्तार में पड़ा रहता हैं इ.
- * भगवान् दूर रहे ६ घर से निर्गत अन् निगु ( 'निगुरोभपार्जुन' ) होता है उमझे नि ।
- * । इट ४४ ॐ ॐ ॐ ॐ भुयान भगवान् । कहीं कहीं गोपान भी पाठ हैं।
३ ३ ४ ४ ३ ॐ टीका र सप्तशती में नहीं है। न्नाहूनान इस पर यह भाव नि ।